यमुनोत्री | Yamunotri
देवभूमि उत्तराखण्ड की पहचान यहाँ स्थित पवित्र धामों से है। अनगिनत काल से वेद-पुराणों में ऋषियों द्वारा इस पुण्य धरा का वर्णन प्राप्त होता रहा है। भारत के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित यह हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड, संपूर्ण देश के लिए एक तीर्थ स्थल रहा है। हर वर्ष देश-विदेश से लाखों सनातनी देवभूमि का दर्शन कर पुण्य प्राप्त करने उत्तराखण्ड आते हैं। आज इस ब्लॉग में हम उत्तराखण्ड के चार धामों में प्रथम धाम यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करेगें। अन्य तीन धाम गंगोत्री धाम, केदारनाथ धाम व बद्रीनाथ धाम के बारे में हम पहले के ब्लॉग में विस्तार से बात कर चुके हैं। इस लेख के माध्यम से हम यमुनोत्री धाम की यात्रा, यमुनोत्री धाम की महिमा व इतिहास, उसकी मुख्य शहरों से दूरी, यमुनोत्री धाम में मुख्य दर्शनीय स्थल, यमुनोत्री धाम कैसे पहुँचे व यहाँ रूकने की व्यवस्था आदि सभी विषयों की जानकारी साझा करेगें। हमारा प्रयास रहेगा कि यह लेख सरकारी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं एंव उत्तराखण्ड दर्शन करने आने वाले सभी पर्यटकों के लिए उपयोगी साबित होगा।
राज्य - उत्तराखण्ड जिला - उत्तरकाशी समुद्रतल से ऊँचाई - 3235 मी कपाट खुलने का समय - अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर
स्थिती | Location
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध चार धामों में प्रथम धाम यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से लगभग 3,235 मीटर की ऊँचाई पर यमुना नदी के बाएँ तट पर स्थित है। ऋषिकेश से यमुनोत्री लगभग 242 किलोमीटर तथा उत्तरकाशी से लगभग 131 कि किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर से एक किलोमीटर आगे 4412 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यमुनोत्री बाँक से यमुना नदी निकलती है।
यमुनोत्री मंदिर की महिमा | Glory of Yamunotri Temple
इसकी महिमा पुराणों ने यों गाई है
सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी।आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।
तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रतासर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम
अर्थात जहाँ से यमुना (नदी) निकली है वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!
यमुनोत्री धाम के दर्शनीय स्थल | Yamunotri Dham Attractions
यमुना देवी मंदिर | Yamuna Devi Temple
देवी यमुना की तीर्थस्थली, यमुना नदी के स्रोत पर स्थित है। यह तीर्थ गढवाल हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसके शीर्ष पर बंदरपूंछ चोटी गंगोत्री के सामने स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नहीं है क्योंकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। देवी यमुना माता के मंदिर का निर्माण, टिहरी गढवाल के महाराजा प्रताप शाह द्वारा किया गया था। अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरीतिमा मन को मोहने से नहीं चूकती है।
सूर्यकुण्ड | Suryakund
यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण यहाँ के तप्तकुण्ड हैं। इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20 फीट की दूरी पर है, केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड एवं तापक्रम लगभग 195 डिग्री फारनहाइट है, जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है। इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है, जिसे “ओम् ध्वनि” कहा जाता है। इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है।जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को “स्टीम कुकिंग” कहा जाता है।
गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है। यमुनोत्तरी से 4 मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है। विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था। दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहाँ नहीं पहुँच सकता। स्थानीय लोगों का कहना है कि आजसे लगभग 60 साल पहले विष्णुदत्त उनियाल वहाँ गए थे। लौटते समय उन्होंने वहाँ एक शिवलिंग देखा जैसे ही वह उसे उठाने के लिए हुए वह गायब हो गया।
दिव्यशिला | Divyashila
यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) मंदिर में जाने से पहले एक पाषाण शिला मिलती है, जिसकी पूजा की जाती है। इसे दिव्य शिला कहते हैं जो कि सूर्यकुण्ड के निकट है जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है, इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था, इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है। इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है, ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें।
यमुनोत्री धाम मंदिर का पौराणिक तथ्य एंव इतिहास | Mythological facts and history of Yamunotri Dham
यमुनोत्री का पौराणिक इतिहास लगभग-लगभग उतना ही पुराना है जितना कि सनातन धर्म। पौराणिक कथानक के अनुसार यमुना, यमराज की बहन व सूर्य भगवान की बेटी और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में कालिंदी के नाम से प्रसिद्ध थी। महाभारत के विराटपर्व तथा वनपर्व में कलिन्द पर्वत तथा कालिन्दी का उल्लेख मिलता है। केदारखण्ड में यमुना के उद्भव और नामकरण के सम्बन्ध में कहा गया है-
सन्तुष्टोभास्करः प्रादात्पितॄणां स्वामिता च वै।
यमुना च महाभागे त्रैलोक्यहितकांक्षया॥
नदी जाता महाभागा यमुनोत्तरवासिनी।
यस्या वै दर्शनात्सद्यः प्रमुचयते॥
(केदारखण्ड अध्याय 9-89-90)
(अर्थात संतुष्ट सूर्य ने यम को पितरों का स्वामी बना दिया और तीनों लोकों की हित कामना से सूर्य भगवान ने अपनी पुत्री यमुना को भी देवताओं के हित में दे दिया। तब से यमुना, नदी हो गयी, यमुना उत्तर में ‘यमुनोत्तरी’ में वास करने लगी। जिसके दर्शन मात्र से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है।)
एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनि का निवास था। आज का वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19 वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है। यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए “ओम् सदृश “ध्वनि के साथ नि:स्तरण है। तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है, वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है। वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।
1946में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी, और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है। पहले हनुमान चट्टी से यमुनोत्तरी तक का मार्ग पगडंडी के रूप में बहुत डरावना था, जिसके सुधार के लिए खरसाली से यमुनोत्तरी तक की 4 मील लम्बी सड़क बनाने के लिए दिल्ली के सेठ चांदमल ने महाराजा नरेन्द्रशाह के समय 50000 रुपए दिए। पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक “छाया पथ “भी यमुनोत्तरी आता था।
यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है। जहाँ भैंरो का मन्दिर है। अनेक पुराणों में यमुना तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण (39/9_13) में यमुनोत्तरी माहात्म्य का वर्णन है।केदारखण्ड (9/1-10) में यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है। इसे सूर्यपुत्री, यम सहोदरा और गंगा- यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है। ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को “यमुना प्रभव” तीर्थ कहा गया है। ॠग्वेद (7/8/19) मे यमुना का उल्लेख है। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी, तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।
हेमचन्द्र ने अपने “काव्यानुशान “मे कालिन्द्रे पर्वत का उल्लेख किया है, जिसे कालिन्दिनी (यमुना) के स्रोत प्रदेश की श्रेणी माना जाता है। डबराल का मत है कि कुलिन्द जन की भूमि संभवतः कालिन्दिनी के स्रोत प्रदेश में थी। अतः आज का यमुना पार्वत्य उपत्यका का क्षेत्र, जो रंवाई, जौनपुर जौनसार नामों से जाना जाता है, प्राचीनकाल में कुणिन्द जनपद था। “महामयूरी” ग्रंथ के अनुसार यमुना के स्रोत प्रदेश में दुर्योधन यक्ष का अधिकार था।उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है। यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है।काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहाँ शक रहते हैं, वहाँ यम तुषार- कीर भी है। इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।
मंदिर के कपाट खुलने का समय | Temple opening time
अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के पर्व पर बद हो जाते हैं।
यमुनोत्री मंदिर कैसे पहुँचे | How to reach at Yamunotri Temple
यमुनोत्री के लिए दो मार्ग हैं। पहला मार्ग ऋषिकेश से चम्बा , धरासू होते हुए बड़कोट से जानकीचट्टी तक है। ऋषिकेश से यमुनोत्री 222 किलोमीटर है, जिसमें हनुमानचट्टी से पैदल यात्रा छह किलोमीटर रह जाती है। दूसरा मार्ग हरिद्वार से देहरादून, मसूरी, यमुना पुल, डामटा, नौगाँव, बड़कोट, हनुमानचट्टी होकर है। हनुमानचट्टी से यमुनोत्री के बीच में फूलचट्टी तथा जानकीचट्टी क्रमशः 6 तथा 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यमुनोत्री सिद्ध तीर्थ है। यमराज ने यहीं पर तपस्या करके लोकपाल का पद प्राप्त किया था।
सड़क मार्ग से | By Road
अगर आप यमुनोत्री धाम की यात्रा सड़क मार्ग से बस या अपने वक्तिगत वाहन से से करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले बस से ऋषिकेश, हरिद्वार या देहरादून पहुँचना होगा। ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी लगभग 210 किमी है। यहाँ से आपको यमुनोत्री के लिए सीधे बस सेवा उपलब्ध हो जाऐगी।
रेल मार्ग से | By Train
अगर आप यमुनोत्री धाम की यात्रा रेल मार्ग से करना चाहते हैं तो आप जहाँ से आना चाहते हैं वहाँ से ऋषिकेश, हरिद्वार या देहरादून तक रेल से आ सकते हैं। जहाँ से आपको आगे का सफर बस से करना होगा।
हवाई मार्ग से | By Air
अगर आप हवाई यात्रा करके यमुनोत्री धाम पहुँचना चाहते हैं तो यमुनोत्री धाम से निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट (देहरादून) है। जो कि यमुनोत्री से लगभग 254 किमी की दूरी पर स्थित है। जौलीग्रांट हवाई अड्डा से आप रिक्शा या बस से भनियावाला या ड़ोईवाला पहुँच सकते हैं जहाँ से आपको ऋषिकेश जाने के लिए सीधे बस की सुविधा मिल जाएगी और ऋषिकेश से यमुनोत्री धाम आप टैक्सी या बस की सुविधा लेकर आप आसानी से पहुँच हैं।
मुख्य शहरों से यमुनोत्री धाम की दूरी | Distance of Yamunotri Dham from main cities
दिल्ली से यमुनोत्री की दूरी - 426 किलोमीटर देहरादून से यमुनोत्री की दूरी - 181 किलोमीटर हरिद्वार से यमुनोत्री की दूरी - 221 किलोमीटर ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी - 210 किलोमीटर चण्डीगढ़ से यमुनोत्री की दूरी - 289 किलोमीटर
यमुनोत्री धाम की यात्रा का सही समय | Best time to visit Yamunotri Dham
यूँ तो यमुनोत्री धाम की यात्रा अप्रैल-मई से प्रारंभ हो जाती है पर यात्रा क सही समय अगस्त-सितंबर-अक्टूबर माना जाता है। इस समय धाम में भीड़ भी कम होती है और रास्ते टूटने का भी डर नहीं होता।
यमुनोत्री धाम में आवास व्यवस्था | Accommodation in Yamunotri Dham
यमुनोत्री तथा यात्रा मार्ग में समस्त प्रमुख स्थानो पर गढ़वाल मण्डल विकास निगम यात्री विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह तथा धर्मशालाएं उपलब्ध हैं।
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