बसंत पंचमी | Basant Panchami

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Basant panchami

यह ब्लॉग समर्पित है आपके और हम सबके पसंदीदा पर्व बसंत पंचमी (Basant Panchami) को। हाँ, वही बसंत पंचमी जिसका इंतजार गाँव से लेकर शहरों तक का आम जनमानस बड़ी ही बेसब्री से करता है। इस वर्ष बसंत पंचमी (Basant Panchami 2024), पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि 13 फरवरी 2024 को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट शुरू होगी, और 14 फरवरी 2024 को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी। अपने-अपने गाँव व पहाड़ों को छोड़कर दूर शहरों में रोजगार की तलाश में गए और वहीं बस गए लोग बसंत पंचमी के अवसर पर अपने घर-परिवार, व खेत खलिहानों की ओर पुनः लौटने का प्रयास करते हैं। पूष की कड़ाके की शर्द रातों की ठिठुरन के बाद इसी दिन से ग्रीष्मकाल प्रारंभ होता है। और साथ ही प्रारंभ होता है पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों में नव-जीवन संचार! नव-चेतना का संचार करने वाले इस पावन पर्व को संपूर्ण भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। देश के विभिन्न स्थानों पर मेले व उत्सवों के माध्यम से फाल्गुन मास का स्वागत किया जाता है। तो आइए अपने इस खूबसूरत पर्व बसंत पंचमी (Basant Panchami) के विषय में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।

बसंत पंचमी का महत्व | Basant Panchami

पुण्य भूमि भारत के पर्व भी इसकी पावन धरा के ही तरह पुनीत एंव पावन है। बसंत पंचमी का हिन्दु धर्म में विशेष महत्व है। माघ महीने को उत्साह का प्रतीक माना जाता है। माघ शुक्ल पर आने वाला यह पावन लोकपर्व बसंत पंचमी भारतीय जनमानस के जीवन को विभिन्न रूपों से प्रभावित करता है। बसंत पंचमी एक हिन्दू त्यौहार है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने की परंपरा है। पीले रंग को खुशहाली व उल्लास का प्रतीक माना जाता है। खेतों में लहलहाते सरसों के पीले फूल भी झूम-झूमकर बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। आज के दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा का भी विधान है। ऋषि-मुनियों द्वारा रचित पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में अलग-अलग ढंग से बसंत पंचमी की विशेषताओं का वर्णन मिलता है। इस दिन गाँव के देवदास समस्त ग्रामीणों के घर जौ के पौधों की एक छोटी गड्डी डाल जाते हैं। जिन्हें घर के प्रवेश द्वार के सिरों पर दोनों ओर गोबर से चिपका दिया जाता है। इसी दिन भूमिया की पूजा सम्पन्न कर आधी रात तक गाए जाने वाले थड़िया गीत व चौंफले आदि के सामूहिक लोकगीत आरम्भ हो जाते हैं। गीतों का यह क्रम विषुवत संक्रांति तक चलता है। बसंत पंचमी को कई जगह मेले भी लगते हैं।

माँ सरस्वती की वंदना का विशेष दिन | Basant Panchami

Basant panchami

प्राचीन वेद-पुराणों के अनुसार बसंत पंचमी को ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। अतः इस दिन माँ शारदा की विशेष पूजा का विधान है। विभिन्न कलाओं से संबंधित जनमानस जैसे – लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार, विद्यार्थी, एंव शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत सभी लोग इस दिन माँ सरस्वती की वंदना करते हैं एंव कलाओं से संबंधित उपकरणों की पूजा की जाती है।माँ सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।

खुशहाली का प्रतीक – बसंत पंचमी | Basant Panchami

Basant panchami

बसंत पंचमी को खुशहाली का प्रतीक के रूप में जाना जाता है। बसंत पंचमी का पर्व सूर्य उत्तरायण (उत्तरैणी) के बाद आता है। हिन्दू धर्म में यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। बसंत ऋतु के आगमन पर मनाए जाने वाला लोकपर्व बसंत पंचमी (Basant Panchami) फूलों पर बहार लेकर आता है। खेतों में सरसों के फूल खिलखिला उठते हैं। मानो प्रकृति मुस्कुरा रही हो। गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं और झूम-झूमकर मंद-मंद हवा के संग इठलाती रहती है। आमों के पेड़ों पर बौंर आने प्रारम्भ हो जाते हैं और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। रंग-बिरंगे फूलों में भर-भर भंवरे भंवराने लगते हैं। बसंत ऋतु के आगमन से संपूर्ण सृष्टि का कण-कण खिल उठता है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, बच्चे-बूढ़े सभी उल्लास से भर जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो, माँ प्रकृति स्वयं आकर चहुंओर नव चेतना प्रदान कर रही हो।बसंत पंचमी के आगमन पर प्रकृति अपने चरम पर होती है। विभिन्न स्थानों पर सुन्दर व आकर्षित करने वाले मेले लगते हैं। लोग घरों से बाहर निकलकर इस दिन खूब खरीदारी करते हैं। जलेबी खाते हैं व खुशियाँ मनाते हैं। ठिठुरन के बाद सूर्य देव की धीमी-धीमी गर्माहट तन-मन दोनो को प्रसन्न करती है।

बसंत पंचमी के दिन कण्वाश्रम/चौकीघाट का मेला

Basant panchami

हिमालय के पाद में शिवालिक पहाड़ी की तलहटी पर हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थल है कण्वाश्रम जो कि कोटद्वार से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कण्वाश्रम में मालिनी नदी के तट पर बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मालिनी नदी के तट पर स्थित इसी स्थान पर चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत का जन्म हुआ था। जिसके नाम पर आगे चलकर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। हजारों वर्ष पूर्व ऋग्वेद व पौराणिक कथाओं में जिस मालिनी नदी का जिक्र किया गया है वह आज भी भाबर के बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित कर रही है। मालिनी नदी जो कि महागढ़ पर्वत के चरणों में बहती है जिसको अमर कवि कालिदास ने उतना ही पवित्र माना है जितना कि गंगा नदी को। प्राचीनकाल में गढ़वाल क्षेत्र में जिन दो विद्यापीठों का जिक्र किया गया है उनमें पहला बद्रिकाश्रम व दूसरा कण्वाश्रम था। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ की रचना इसी कण्वाश्रम में की। आइए अब जानते हैं कण्वाश्रम के विषय में संपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी। अतः इस दृष्टि से भी बसन्तोत्सव पर लगने वाला यह मेला अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी (Basant Panchami) के अवसर पर कण्वाश्रम में लगने वाले इस विशाल मेले में दूर-दराज से लोग भारी संख्या में आते हैं। मेले में अनेक प्रदर्शनियाँ तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। पहले यह मेला दिन-रात चलता था। रात्रि को सांस्कृतिक कार्यक्रम, चलचित्रों के प्रदर्शन, ढोल दमाऊँ वादन के साथ पांडव नृत्य के मंडाण लगते थे। थड्यागीत और चौंफुले के नृत्य गायन होते थे। रातभर मेले में चहल-पहल रहती थी। मेले में आस-पास के गाँवों के हजारों लोग सम्मिलित होते हैं।

वसन्त पंचमी कथा | Basant Panchami

उपनिषदों की कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो उन्हें उनकी बनाई सृष्टि में अधूरापन महसूस हुआ। कुछ तो ऐसा था जो उन्हें परेशान कर रहा था। चारों ओर मौन छाया रहता था। जब ब्रह्मा जी का व्याकुल मन शांत नहीं हुआ तब उन्होंने भगवान श्री विष्णु की स्तुति की। ब्रम्हा जी की स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं। तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी की बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा।

पौराणिक महत्व

Basant panchami

हर्षोल्लास और खुशहाली भरा हमारा बसंत पंचमी जहाँ हमें नई ऊर्जा और उमंग से भरता है वहीं दूसरी ओर यह हमें उस भावुक और प्रेम से भरे क्षणों की भी याद दिलाता है जब प्रभु श्रीराम और माँ सबरी की भेंट हुई थी। आज ही के दिन यानी बसंत पंचमी को त्रेतायुग में सीता की खोज करते हुए श्रीराम शबरी की कुटिया दंडकारण्य में जा पहुँचे थे। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। वर्तमान में दंडकारण्य का वह क्षेत्र गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन ही रामचंद्र जी वहाँ आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहाँ शबरी माता का मंदिर भी है।

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