Complete Introduction of Almora District
अल्मोड़ा जिला, भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के कुमाऊँ प्रभाग में स्थित एक जिला है। इसका मुख्यालय अल्मोड़ा है। अल्मोड़ा, कुमाऊँ मण्डल में स्थित उत्तराखण्ड के प्राचीन नगरों में से एक है। 3,139 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला एंव समुद्रतल से 1,638 मीटर की ऊँचाई पर स्थित अल्मोड़ा, कुमाऊँ के लगभग केन्द्र में कोसी और सुयाल नदियों के मध्य में स्थित है। अल्मोड़ा शहर के पूर्व में पिथौरागढ़ जिला, पश्चिम में गढ़वाल क्षेत्र, उत्तर में बागेश्वर जिला और दक्षिण में नैनीताल जिला है।
अल्मोड़ा नगर का पहाड़, एक घोड़े की नाल के आकार की रिज पर स्थित है, जिसमें पूर्वी भाग को तालिफाट कहा जाता है और पश्चिमी को सेलिफाट के रूप में जाना जाता है। आज हम चंद्र वंश के राजाओं द्वारा स्थापित कुमाऊँ क्षेत्र के खूबसूरत अल्मोड़ा जिला के बारे में इस Complete Introduction of Almora के ब्लॉग में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेगें। इस ब्लॉग में हम अल्मोड़ा के इतिहास, धार्मिक स्थलों, पर्यटन स्थलों (Top 10 Tourist Places Of Almora) एंव वर्तमान परिदृश्य के बारे में जानेगें। तो आइए जानते हैं, पर्यटकों की पसंदीदा सैरगाह अल्मोड़ा को एक अलग अंदाज में।
अल्मोड़ा जिला के महत्वपूर्ण तथ्य | Important facts of Almora
ऊँचाई | 1,642 m |
स्थापना | 1891 |
मुख्यालय | अल्मोड़ा |
क्षेत्रफल | 3139.00 वर्ग कि०मी० |
कुल जनसंख्या: | 622506 |
साक्षरता दर | 80.47 % |
जनसंख्या घनत्व | 198 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी |
लिंगानुपात | 1139 |
भाषा | हिन्दी, कुमाऊँनी |
विधानसभा क्षेत्र | 6 (द्वाराहाट, सल्ट, रानीखेत, अल्मोड़ा, जोगेश्वर एंव सोमेश्वर |
तहसील | 12 ( अल्मोड़ा, रानीखेत, भिकियासैंण, सल्ट, चौखुटिया, सोमेश्वर, द्वारहाट, भनौली, जैंती, स्याल्दे, धौलछीना व लमगड़ा) |
ब्लाक | 11 (स्यालदे, चौखुटिया, भिकियासैंण, ताड़ीखेत, सल्ट, द्वाराहाट, लमगड़ा, धौलादेवी, हवालबाग, ताकुला व भैसियाछाना) |
वन क्षेत्र | 1309.40 वर्ग कि०मी० |
वन्यजीव विहार | बिनसर वन्यजीव विहार |
पिन कोड़ | 263601, 263620 |
टेलीफोन कोड़ | 05962 |
वाहन पंजीकरण | UK01 |
Website | https://almora.nic.in/hi/ |
कॉलेज / महाविद्यालय | राजकीय महाविद्यालय, चौखुटिया राजकीय महाविद्यालय, जैती राजकीय महिला महाविद्यालय, मानिला राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,द्वाराहाट राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,रानीखेत सोबन सिंह जीना परिसर ,अल्मोड़ा |
उत्तराखण्ड के प्राचीन नगर अल्मोड़ा का इतिहास | History of Almora, the ancient city of Uttarakhand
अब हम बात अल्मोड़ा के इतिहास की करेगें। कुमाऊँ के इस प्राचीन नगर ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। 16 वीं शताब्दी में चंद राजाओं के बाद सन् 1790 से 1815 तक यहाँ गोरखों का शासन रहा। इसके बाद अंग्रेजों ने यहाँ सैन्य छावनी बनायी। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में अल्मोड़ा राजनीतिक चेतना का केन्द्र रहा। उस समय महात्मा गाँधी, पं. मोतीलाल नेहरू और जमुनालाल बजाज आदि स्वतंत्रता संग्राम सैनानी यहाँ आये।
इतिहासकार ई.टी. एटकिन्सन के अनुसार चन्द्र वंश के 43 वें राजा भीष्मचन्द्र ने अल्मोड़ा को 1530 में बसाया था और 1563 ई. में राजा बालो चन्द्र ने चम्पावत से अपनी राजधानी यहाँ स्थानांतरित कर इसका नाम मुगल प्रभाव के कारण आलमनगर रखा था, जिसके बाद यह अल्मोड़ा हो गया। 1817 ई. में यहाँ रामजे कालेज, छावनी, कचहरी, नार्मल स्कूल आदि बना तथा 1864 में नगरपालिका का गठन हुआ। 1892 में इसे जिला मुख्यालय बनाया गया। कभी इस नगर में 360 नौले थे। वर्तमान में शहर में फोर्टमायरा किला, लालाबाजार, कुणिन्द मूर्तियों व मुद्राओं का संग्रहालय, नंदादेवी मंदिर, टमटयूड़ा (ताबा बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध) मोहल्ला आदि दर्शनीय हैं। इतिहासकारों के अनुसार 14 वीं सदी में भीष्मचंद द्वारा खगमारा किले का निर्माण किया गया।इस नगर के आस-पास डियरपार्क, चितईमंदिर, कसारदेवी मंदिर, सिमतोला, मोहनजोशी पार्क, ब्राइट एंड कार्नर आदि दर्शनीय स्थल हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय नेहरू जी अल्मोड़ा कारागार में कुछ दिन बन्द थे।
अल्मोड़ा जिले का प्राकृतिक सौंदर्य | Natural beauty of Almora district
घुमक्कड़ी का शौक रखने वाले, प्रकृति के बीच समय बिताना पसंद करने वाले एवं हिमालय क्षेत्रों में भ्रमण करने के शौकीन पर्यटकों के लिए अल्मोड़ा एक बेहद खूबसूरत सैरगाह साबित होता है। यहाँ पर स्थित प्राचीन मंदिर, किले, एंव ब्रिटिश कालीन स्थापत्य, इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों का आकर्षित करता है। अल्मोड़ा में कुमाऊँ की सुरम्य वादियों की लुभावनी आबोहवा और संस्कृति की झलक शहर में प्रवेश के साथ ही मिलती है। सालभर यहाँ का मौसम पर्यटकों को खासा पसंद आता है। साहित्य, संस्कृति, लोककला, गीत-संगीत की समृद्धशाली परम्परा यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से मिलकर अल्मोड़ा को सैलानियों के लिए खास बनाती है। स्वामी विवेकानन्द, रविन्द्रनाथ टैगोर, गोविन्द लामा, नन्दलाल बोस जैसे विचारकों के साथ उदय शंकर जैसे संस्कृति कर्मियों का यह पसन्दीदा स्थान रहा। साहित्य जगत में सुमित्रानन्दन पन्त, गौरा पन्त ‘शिवानी’, शैलेश मटियानी, इलाचंद्र जोशी, मनोहर श्याम जोशी जैसे साहित्यकारों की रचनाओं में अल्मोड़ा की प्राकृतिक छटा एवं यहाँ की लोक-कला संस्कृति के प्रवाह की झलक सहज ही महसूस की जा सकती है। अल्मोड़ा का पारम्परिक पहाड़ी परिवेश यहाँ के जन-जीवन को उल्लासित करता प्रतीत होता है।
अल्मोड़ा जिले में स्थित धार्मिक स्थल | Religious places located in Almora district
अल्मोड़ा जिला अपने प्राचीन धार्मिक स्थलों व स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित मंदिर हिमालय की देव-संस्कृति का परिचायक हैं। धर्म व आस्था का पवित्र संगम आपको अल्मोड़ा जिले के हर कोने में नजर आऐगा। देश-विदेश से हर वर्ष लाखों श्रद्धालुगण अल्मोड़ा की धार्मिक यात्रा पर आते हैं एंव सात्विक ऊर्जा के साथ अपने गंतव्य को लौट जाते हैं। अब हम अल्मोड़ा के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के विषय में जानेगें।
नन्दा देवी मंदिर | Nanda Devi Temple
अल्मोड़ा नगर में स्थित कुमाऊँ की मध्यकालीन कला की उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध नन्दादेवी परिसर में तीन देवालय हैं। कमिश्नर ट्रेल द्वारा मल्ला महल की नन्दा प्रतिमाओं को पर्बतेश्वर मन्दिर में रखे जाने के पश्चात् यह नन्दादेवी मन्दिर कहलाया। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद की अष्टमी को विशाल मेला लगता।
नंदा देवी मंदिर का इतिहास व पौराणिक कथाएँ | History and Mythology of Nanda Devi Temple
नंदा देवी का मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक अत्यंत धार्मिक एंव पौराणिक शक्तिपीठ स्थल है। इस क्षेत्र में “नंदा देवी मंदिर” का विशेष धार्मिक महत्व है। अल्मोड़ा में स्थित इस शक्तिपीठ में देवी दुर्गा की पूजा होती है। समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” माँ नंदा देवी को समर्पित है। नंदा देवी माँ दुर्गा का अवतार और भगवान शंकर की पत्नी है और हिमालय की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है।
अति प्राचीनकाल से ही माँ नंदा देवी की उपासना करने का प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। अल्मोड़ा में माँ नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है।
नंदा देवी मेला | Nanda Devi Fair
प्रतिवर्ष 18-25 सितंबर को 105 वर्षों से आयोजित किया जाने वाला ऐतिहासिक धार्मिक एवं पौराणिक रूप से विख्यात नंदा देवी का मेला भाद्र मास (महीने) की अष्टमी (नंदा अष्टमी) के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिमालय की पुत्री नंदा देवी की पूजा अर्चना के लिए प्रत्येक वर्ष भाद्र शुक्ल पक्ष की पंचमी से कुमाऊं व गढ़वाल दोनों मंडलों में कई स्थानों पर मेले लगते हैं। कुमाऊँ के अल्मोड़ा, नैनीताल, मिलन कोटभ्रामरी, बागेश्वर आदि जगहों पर नंदा देवी मेले लगते हैं। अल्मोड़ा के नंदा देवी परिसर में इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है।
इस अवसर पर पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं। पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है। यह प्रतिमायें कदली स्तम्भ से बनाई जाती हैं। मूर्ति का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नन्दादेवी के सद्वश बनाया जाता है।
नंदा देवी मंदिर की स्थापना का पौराणिक इतिहास | Mythological History of Establishment of Nanda Devi Temple
कुमाऊँ में माँ नंदा की पूजा का क्रम चंद शासको के जामने से माना जाता है तथा इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित करने का सारा श्रेय चंद शासको का जाता है। एक किवंदती के अनुसार सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से माँ नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया, तब से चंद शासको ने माँ नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया।
इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद को जब नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली तो उन्होंने खजाने में से अशर्फियों को गलाकर माँ नंदा की मूर्ति बनाई। मूर्ति बनने के बाद राजा जगत चंद ने मूर्ति को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया। सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और उघोत चंद्रेश्वर नामक “दो शिव मंदिर” मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए। वर्तमान में यह मंदिर चंद्रेश्वर व पार्वतीश्वर के नाम से प्रचलित है। सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने उघोत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया।
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कटारमल सूर्य मंदिर | Katarmal Sun Temple
9 वीं -10 वीं शती में राजा कटारमलदेव द्वारा निर्मित 1000 वर्ष पुराने बड़ादित्य सूर्यमंदिर के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। मंदिर में मुख्य प्रतिमा सूर्य की है। अल्मोड़ा के दक्षिण – पश्चिम में मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर कटारमल गाँव है। सन् 1790 में गोरखों से अल्मोड़ा पर विजय प्राप्त कर अंग्रेजों ने यहीं पर अपनी सैनिक छावनी बनाई थी। मुख्य मंदिर के चारों ओर तथा भीतर 44 छोटे-छोटे मंदिर हैं। गर्भगृह में नृसिंह, कुबेर, लक्ष्मी-नारायण, शिव-पार्वती, गणेश एवं महिषासुरमर्दिनी की मूर्तियाँ रखी हुई हैं।
सूर्यमंदिर के ध्वंस होने पर, इसके उत्तराखण्ड शैली के कपाट राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में संरक्षित हैं जो अपनी विशिष्ट काष्ठ (शिल्प) कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है। सूर्यमंदिर को आवृत्त करने वाली विशाल ऊँची दीवारों के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। उड़ीसा के कोणार्क सूर्यमन्दिर के बाद इस मन्दिर को देश के दूसरे सूर्यमन्दिर का स्थान प्राप्त है। इसके बाद गोधरा सूर्यमन्दिर गुजरात, मार्तण्ड सूर्यमन्दिर कश्मीर और ओसिया सूर्यमन्दिर राजस्थान का नाम आता है। इस मंदिर के समीप गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान भी है। यहीं कुमाऊँ क्षेत्र का रणचंडी मंदिर भी है।
चितई गोलू देवता मंदिर | Golu Devta Temple
अल्मोड़ा के समीप असीम आस्था एवं श्रद्धा का स्थल चितई है। यह स्थान यहाँ के लोक देवता गोलू का मंदिर अल्मोड़ा से लगभग आठ किमी ० की दूरी पर है। गोलू देवता कुमाऊँ क्षेत्र में न्याय के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। लोग अपनी शिकायतें अथवा अपनी मनोकामनाओं को पत्र के माध्यम से गोलू देवता तक पहुँचाते हैं। मंदिर परिसर में गोलू देवता को भेजे गये ये हजारों पत्र टंगे दिखते हैं तो वहीं मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित घंटियां परिसर में झूलती देखी जा सकती हैं। परम्परागत वस्त्राभूषणों में इस क्षेत्र के श्रद्धालु और यहाँ आने वाले सभी पर्यटक घंटियाँ बजाकर चितई के वातावरण को श्रद्धा से और अधिक सम्मोहक बनाते हैं।
चितई गोलू मंदिर अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर है। यहां गोलू देवता का भव्य मंदिर है। मंदिर के अंदर सेफेद घोड़े में सिर पर सफेट पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु न्याय मांगने के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिनको न्याय नहीं मिलता वो गोलू देवता की शरण में पहुंचते हैं और उसके बाद उनको न्याय मिल जाता है।
चितई गोलू देवता का मंदिर अपने न्याय के लिए दूर-दूर तक मशहूर है। उत्तराखण्ड में गोलू देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से सबसे लोकप्रिय और आस्था का केंद्र अल्मोड़ा जिले में स्थिति चितई गोलू देवता का मंदिर है।
ऋग्वेद में उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा गया है। ऐसी भूमि जहाँ देवी-देवता निवास करते हैं। हिमालय की गोद में बसे इस सबसे पावन क्षेत्र को मनीषियों की पूर्ण कर्म भूमि कहा जाता है। उत्तराखंड में देवी-देवताओं के कई चमत्कारिक मंदिर हैं। इन मंदिरों की प्रसिद्धि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली हुई है। इन्हीं में से एक मंदिर गोलू देवता का भी है।
गोलू देवता को स्थानीय मान्यताओं में न्याय का देवता कहा जाता है। अल्मोड़ा में गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। इन्हें राजवंशी देवता के तौर पर पुकारा जाता है। गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है।
मन्नत पूरी करने के लिए भक्त लिखते हैं आवेदन पत्र
अपनी समस्याओं से परेशान लोग जब अल्मोड़ा में स्थित चितई के न्याय देवता गोलू महाराज के मंदिर में आते हैं तो वो अपनी मन्नत एक कागज में लिखकर वहाँ टाँग आते हैं। इसी कारण मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में पत्र टंगे हुए नजर आते हैं।
मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाते हैं घण्टियाँ
दूर-दूर से आए भक्तों की जब गोलू देवता मंदिर में आकर मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त खुश होकर घंटी चढ़ाते हैं। इसी कारण मंदिर में लाखों अद्भुत घंटे-घंटियों का संग्रह है। चितई गोलू मंदिर में भक्त मन्नत मांगने के लिए चिट्ठी लिखते हैं। इतना ही नहीं कई लोग तो स्टांप पेपर पर लिखकर अपने लिए न्याय मांगते हैं। गोलू देवता को शिव और कृष्ण दोनों का अवतार माना जाता है। उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि विदेशों से भी गोलू देवता के इस मंदिर में लोग न्याय मांगने के लिए आते हैं। मंदिर की घंटियों को देखकर ही आपको इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि यहाँ मांगी गई किसी भी भक्त की मनोकामना कभी अधूरी नहीं रहती।
कसार देवी मंदिर | Kasar Devi Temple
अल्मोड़ा के आसपास सैलानियों के लिए कई खूबसूरत सैरगाह हैं। लगभग 10 किमी दूरी पर ऊँची पहाड़ी पर कसार देवी का मंदिर है। इस ऊँचाई से अल्मोड़ा शहर का अवलोकन और हिम चोटियों के नजारे देखकर पर्यटक प्रकृति के और करीब आ जाता है। पहाड़ी की चोटी से सूर्योदय और सूर्यास्त की लालिमा अल्मोड़ा के दृश्य और वातावरण में रंगीनियाँ बिखेरती हैं। कसार देवी मंदिर के समीप ही एक शिला पर स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने अल्मोड़ा प्रवास के दौरान योग व ध्यान क्रियायें की थीं। कसार देवी से पहाड़ी रिज के साथ दीनापानी तक दूर – दूर पहाड़ी गाँवों, खेतों और घाटियों की दृश्यावली सुहाने मौसम की अनुभूति से लुभाती है। अल्मोड़ा से लगभग 5 किमी की दूरी पर इसी तरह की एक सैरगाह कालीमठ भी है। इन क्षेत्रों में अनेक रिजोर्ट एवं गेस्ट हाउस पर्यटकों को सुखद प्रवास के लिए आकर्षित करते हैं।
कसार देवी मंदिर का रहस्य | Mystery of Kasar Devi Temple
देवभूमि की इस हिमालयी कसार देवी का मंदिर आध्यात्मिक साधना के साथ-साथ वैज्ञानिक शोध का भी विषय रहा है। ऐसा माना जाता है कि चसाद देवी शक्तिपीठ के आसपास का क्षेत्र चुंबकीय शक्ति का केंद्र है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं।पर्यावरणविद डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहाँ धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। अब तक हुए वैज्ञानिक शोध एंव अध्ययन में यह पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं। इन तीनों जगहों पर चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है। डॉ. रावत ने भी अपने शोध में इन तीनों स्थलों को चुंबकीय रूप से चार्ज पाया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास भी इस तरह की शक्ति निहित है।
स्वामी विवेकानंद ने भी की थी साधना
अल्मोड़ा में स्थित कसार देवी शक्तिपीठ में पूर्व में भारत के महान तपस्वी और युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानन्द, जिन्होंने भारत को पुनः अपनी आध्यात्मिक चेतना के बल पर खड़ा किया, ने भी यहाँ साधना की थी।
ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद वर्ष 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनों के लिए यहाँ आए थे। बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी।
इसी तरह बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। हर साल इंग्लैंड से और अन्य देशों से अब भी शांति प्राप्ति के लिए सैलानी यहां आकर कुछ माह तक ठहरते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने 11 मई 1897 को अल्मोड़ा के खजांची बाजार में जन समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का देश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने को इच्छुक रहता है।
यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूँ। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है। संबोधन में आगे कहा कि इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा।
यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। उल्लेखनीय है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई, जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है।
कसार देवी जी• पी• एस 8 | KASAR DEVI GPS 8
नासा के वैज्ञानिकों ने कसार देवी मंदिर के बायीं और एक स्थान चिन्हित किया है, जहाँ GPS 8 लीखा है। इस जगह को अमेरीकी वैज्ञानिकों ने ग्रेविटी पॉइंट कहा है।
जागेश्वर मंदिर समूह | Jageshwar Temple Group
कुमाऊँ मंडल के प्रमुख देवस्थलों में जागेश्वर प्रसिद्ध तीर्थ है। उत्तराखण्ड स्थित चार धामों (श्रीबद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री) के साथ ही जागेश्वर पाँचवाँ धाम कहा जाता है। इस तीर्थ की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगों में की जाती है। इस देवस्थल में देव मंदिर तथा मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भगवान शिव की तपस्थली है। यहाँ लगभग 25 मंदिर अपनी भव्यता के साथ – साथ पुरातत्त्व कला की दृष्टि से भी प्रसिद्ध हैं, जिनमें 8 वीं शताब्दी में निर्मित महामृत्युंजय का मंदिर सबसे प्राचीन है, जिसमें प्रथम शिवलिंग स्थापित है।
पुरातत्त्व विभाग के सर्वेक्षणों के अनुसार यहाँ 150 मंदिर होने की पुष्टि हुई है, जिनमें नवदुर्गा, सूर्य, हनुमान, कालिका, चंडिका, कुबेर, जगन्नाथ, वृद्ध जागेश्वर, कोटेश्वर, बटेश्वर, कालेश्वर आदि प्रमुख हैं। प्रायः सभी मंदिर केदारनाथ शैली से निर्मित हैं। अल्मोड़ा – पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर 1870 मी की ऊँचाई पर स्थित इस देवस्थल की अल्मोडा से दूरी 35 किलोमीटर है। वर्ष 2005 में केंद्रीय पर्यटन विभाग ने जागेश्वर को ग्रामीण पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने हेतु चयनित किया है। बैशाख पूर्णिमा, श्रावण चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा तथा शिवरात्रि पर जागेश्वर में विशेष पूजा विधान है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ शक्तिपीठ की स्थापना की थी। मन्दिर समूह से ऊपर जटागंगा है। इसी से शिव का अभिषेक किया जाता है।
अल्मोड़ा नगर से 35 किमी की दूरी पर जटागंगा के किनारे 124 छोटे – बड़े मन्दिरों का समूह, जिनमें 25 अभी भी ठीक अवस्था में हैं, स्थित है। यह राज्य का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ पहले 150 मंदिर थे। इसे उत्तराखण्ड का पांचवा धाम कहा जाता है। हिन्दुओं का यह पवित्र धार्मिक स्थल देवदार के वृक्षों के बीच संकरी घाटी में है। 8 वीं से 10 वीं शती में निर्मित इन कलात्मक मन्दिरों का निर्माण कत्यूरी राजा शालिवाहन देव ने कराया था। यहाँ जागनाथ, महामृत्युंजय, पंचकेदार, डंडेश्वर, कुबेर, लक्ष्मी व पुष्टि देवी के मन्दिर प्रमुख हैं। यहाँ का सबसे प्राचीन मंदिर मृत्युंजय मंदिर व सबसे विशाल मंदिर दिनदेशवारा है। यहाँ के प्रायः सभी मंदिर केदारनाथ शैली में निर्मित हैं। यहाँ से ही दूरी पर उत्तर में प्राचीन वृद्ध जागेश्वर मंदिर हैं।
द्वाराहाट मन्दिर समूह | Dwarahat Temple Group
अल्मोड़ा से 38 किलोमीटर दूर सिंधुतल से 1530 मीटर ऊँचाई पर स्थित द्वाराहाट, कत्यूरी राजवंश के राजाओं के कलाप्रेम और आस्था का केंद्र रहा है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन के अनुसार 11 वीं तथा 12 वीं सदी में इस स्थान पर 30 प्राचीन मंदिरों तथा 365 कुंडों (बावड़ियों) का निर्माण कराया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात सन् 1918 में इन मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। इस मंदिर समूह का सर्वोत्कृष्ट मंदिर
गूजरदेव का मंदिर है।
सभी मंदिर आठ विशिष्ट वर्गों में चिह्नित किए गए हैं, जिन्हें क्रमश : 1. रतनदेवल, 2. कचहरी, 3. मन्देव, 4. गूजरदेव, 5. मृत्युंजय, 6. बद्रीनाथ, 7. केदारनाथ 8. हरिसिंह देवल कहा जाता है, किंतु रतनदेवल (रत्नदेव), कचहरी तथा मन्देव (मनिया) समूह ही प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों के कारण द्वाराहाट को ‘हिमालय की द्वारिका’ कहा जाता है। वास्तव में कत्यूरी शासकों ने इसे द्वारिकापुरी बनाने का प्रयास किया था। वर्तमान में श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ तथा मृत्युंजय मंदिरों में विधि – विधान से पूजा – अर्चना की जाती है।
द्वाराहाट के ऊपर दूनागिरि पर्वत पर दुर्गा देवी का प्राचीन मन्दिर है। इस क्षेत्र में दुर्लभ वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। दुधारू गाय – भैंसें इन्हें चर कर विशिष्ट स्वाद वाला दूध देती हैं। इसीलिए यहाँ का दही पूरे कुमाऊँ में प्रसिद्ध है। यहाँ पर इंजीनियरिंग कॉलेज तथा राजकीय पॉलिटेक्निक स्थापित किये गये हैं।
दूनागिरि | Dunagiri
द्वाराहाट से 14 किमी की दूरी पर दूनागिरी का मन्दिर है। पुराणों के अनुसार दूनागिरी ही द्रोणांचल पर्वत है। यह मंदिर वैष्णवीं शक्ति पीठ है। इस मन्दिर की स्थापना सन् 1183 में हुई थी।
झूला देवी राम मंदिर | Jhula Devi Ram Mandir
रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर चौबटिया मार्ग पर स्थित है। यह स्थान दुर्गा देवी तथा भगवान राम के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
सोमेश्वर महादेव मंदिर | Someshwar Mahadev Temple
सोमेश्वर महादेव मंदिर के कारण प्रसिद्ध है यह धार्मिक स्थल, कत्यूर की रमणीक और उपजाऊ घाटी में अल्मोड़ा-कौसानी मोटर मार्ग पर अल्मोड़ा से 40 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर का निर्माण 700 ईसवी में चंद्र वंश के प्रथम राजा सोमचंद ने कराया था। मंदिर के
में की गई पूजा काशी विश्वनाथ मंदिर में की गई पूजा के समकक्ष मानी जाती है। मंदिर के निकट ही एक जलकुण्ड (नौला) है। जनश्रुति है कि यह नौला पहले एक दुग्ध कुण्ड था जो अशुद्ध हो जाने के कारण जल कुण्ड में परिवर्तित हो गया किंतु श्रद्धालुओं को आज भी इस का जल दूध जैसा ही दृष्टिगोचर होता है।
शीतलाखेत | Sheetlakhet
पुष्पा उद्यानों और औषधीय पादपों की पौधशालाओं के लिए प्रसिद्ध यह स्थान अल्मोड़ा जनपद में, अल्मोड़ा से 30 किलोमीटर दूरी पर सिंधुतल से 1760 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से नंदा देवी, नंदा कोट, चौखम्बा, कामेट, त्रिशूल, हाथी पर्वत आदि हिमाच्छादित शिखरों के मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं। यहाँ स्काउटिंग के राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर शिविर लगते हैं यहाँ से मात्र 2 किलोमीटर दूर भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत का पैतृक गांव खूँट स्थित है। शीतलाखेत से 4 किलोमीटर पर स्याही देवी का प्राचीन मंदिर है।
राम शिला मन्दिर | Ram Shila Mandir
राम शिला मन्दिर अल्मोड़ा जिले में स्थित एक प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित है। चन्द वंशीय राजाओं के समय यह स्थान मल्ला महल कहलाता था। यहीं उनका अष्ट महल दुर्ग भी रहा। 1588 ई. में इस अष्ट महल दुर्ग के मध्य में राजा रुपचन्द ने इस रामशिला मन्दिर समूह की स्थापना कराई थी।
वीरणेश्वर मंदिर | Veeraneshwar Temple
7वीं-8वीं शताब्दी में चन्द्र राजाओं की राजधानी रहा यह धार्मिक पर्यटक स्थल एक सुरम्य स्थान है। इसके चारों ओर ओक, बुराँस तथा बाँज के घने वृक्ष हैं। भगवान शिव का यह मंदिर अल्मोड़ा शहर से 26 किमी उत्तर में बिनसर पहाड़ी पर झंडीधार स्थल पर स्थित है।राजा कल्याण चन्द्र द्वारा यह मंदिर 730-48 ई. में निर्मित किया गया था। वीरणेश्वर मंदिरसे पूरा अल्मोड़ा शहर, हिमालय की कई चोटियाँ व सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ से केदारनाथ, चौखम्बा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा कोट, पंचाचुली शिखरों की शोभा सूर्यास्त के समय देखते ही बनती है।
विभाण्डेश्वर
द्वाराहाट से लगभग 5 किमी दक्षिण की ओर स्थित विभाण्डेश्वर मन्दिर को स्थानीय लोग ‘उत्तर का काशी’ मानते हैं। विषुवत् संक्रांति के अवसर पर यहां स्याल्दे बिखौती का प्रसिद्ध मेला लगता है।
गणानाथ मंदिर | Gananath Temple
अल्मोड़ा से 47 किमी दूर ताकुला के निकट गणानाथ का शिव मन्दिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है । यहाँ शिवलिंग पर प्राकृतिक रूप से जल टपकता है । इसकी चोटी पर मल्लिका देवी का मन्दिर है ।
अल्मोड़ा जिले में स्थित पर्यटक स्थल | Tourist Places In Almora District
जालना | Jalna
अल्मोडा से 35 किमी की दूरी पर स्थित जालना हिमालय के विशाल मनोरम दृश्यों को प्रदान करता है। यहाँ पर विविध प्रकार के फलों जैसे खुबानी, सेब, नाशपाती, आडू, आलू, बुखारा इत्यादि का विशाल उत्पादन होता है।
रानीखेत | Ranikhet
झूलादेव पर्वत श्रृंखला पर पर्यटकों की नगरी रानीखेत अल्मोड़ा से लगभग 50 किमी दूर स्थित है । शान्त एवं सुन्दर प्रकृति का यह छावनी नगर अपनी स्वास्थ्यवर्धक जलवायु , सुहावनी समीर , मनोहर हिमालयी दृश्यों एवं चीड़ – बांज के हरे भरे क्षेत्रों के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ नीचे गगास नदी बहती है और पास ही नागदेव ताल भी है । यहाँ सेना के कुमाऊँ रेजीमेन्ट का मुख्यालय एवं एक संग्रहालय है । यह समुद्रतल से 6000 मी . की ऊंचाई पर स्थित है । कहा जाता है कि चन्द राजा की रानी जियारानी इधर से जा रही थी । उन्हें यह स्थान अच्छा लगा और वह कुछ दिनों तक यहां रुकी । जहां पर वह रुकी थी वहां पर खेत था। बाद में वह खेत रानीखेत नाम से प्रसिद्ध हो गया। अंग्रेजों द्वारा 1869 में आधुनिक रानीखेत की स्थापना हुई ।
अमेरिका के न्यायाधीश विलियम दोगल्स ने इसे विश्व का सर्वोत्तम हिल स्टेशन माना है । तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड मेयो को रानीखेत अति प्रिय था । रानीखेत में स्थित दर्शनीय स्थल हैं – मन कामेश्वर मन्दिर , हनुमान मन्दिर , झूला देवी मन्दिर , शिव मन्दिर , कालिका मंदिर , चौबटिया , भालू बांध , हैड़ाखान मंदिर , ताड़ीखेत , शीतलाखेत , मंजखाली व नागदेव ताल आदि । –
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चौबटिया | Chaubatia
समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊँचाई पर रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया रसीले सेब के उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ शासकीय फल संरक्षण एवं शोध केंद्र द्वारा फलों की उन्नत किस्म के उत्पादन की कार्यशाला द्वारा विभिन्न प्रकार के फलों पर शोध कार्य किया जाता है। सेबों के फलोद्यान शासकीय नियंत्रण में है। चौबटिया से हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों के दृश्य दिखाई देते हैं। इसे Orchard Country (फलोद्यान के देश) के नाम से भी जाना जाता है।
चौखुटिया | Chaukhutia
रानीखेत – कर्णप्रयाग मार्ग पर रामगंगा के तट पर स्थित चौखुटिया , रानीखेत से 54 किलोमीटर दूर एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व का स्थान है । यहाँ कत्यूरी राजवंश के प्राचीन किले के अवशेष इसके वैभवशाली अतीत का दिग्दर्शन कराते हैं । जैसा कि नाम से प्रकट होता है , कुमाऊँनी भाषा में चार पैर ( चौखुटा ) से तात्पर्य है कि इस स्थान से चारों ओर जाने के चार सुलभ मार्ग हैं । यहाँ का काली मंदिर तथा वैष्णोदेवी मंदिर प्रसिद्ध हैं । यहाँ से 18 किलोमीटर पर स्यालदे बिखौती मेले के लिए प्रसिद्ध द्वाराहाट , 32 किलोमीटर पर नैसर्गिक सुषमा संपन्न स्थान द्रोणागिरि , 33 किलोमीटर पर नैथनादेवी का प्रसिद्ध भगवती मंदिर है ।
कत्यूरी राजवंश के किला अवशेष तथा काली व वैष्णों मेंदिर के लिए प्रसिद्ध यह स्थल रानीखेत से 54 किमी की दूरी पर रामगंगा के तट पर स्थित है। यहाँ से मात्र 18 किमी की दूरी पर द्वाराहाट है।
तड़ागताल | Tadagatal
यह अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। एक किमी लम्बा एवं आधा किमी चौड़ा यह ताल चीड़, देवदार, बाज और बुराँस के वृक्षों से घिरा है। ग्रीष्मकाल में इसका कुछ हिस्सा सूख जाता है जिसमें खेती की जाती है। इस ताल के निचले भाग से पानी की निकासी हेतु पाँच सुरंगें बनी हैं, जिनमें से तीन सुरंगें बंद हैं।
अल्मोड़ा जिले का सांस्कृतिक परिचय | Cultural introduction of Almora district
प्रकृति के रंगभरे दृश्य लोकजीवन के दृश्यों को अपने साथ होली के आगमन से ही सहेजना प्रारंभ करते हैं तो स्थानीय लोग होली के त्यौहार में बैठकी होली और नृत्य-गायन पर झूम उठते हैं। नगर में नवरात्रि दशहरा, दीपावली के अवसरों पर सांस्कृतिक आयोजन हों या कुमाउंनी बोली में रामलीला का मंचन और नन्दादेवी की उत्सव परम्पराएं, ये सभी उत्साह और उमंग से भरे स्वतः निमंत्रण होते हैं। पहाड़ी शैली के मकान, बाजार, गलियां, मंदिर, प्राकृतिक जल स्रोत जैसे अनेकों आकर्षण पर्यटकों को सांस्कृतिक नगर की सैर से लुभाते हैं। यह सांस्कृतिक नगर पर्यटकों को जब अपने प्राकृतिक आकर्षणों से जोड़ता है तो मोहक हिमालयी श्रृंखला नन्दादेवी, त्रिशूल, पंचाचूली की दृश्यावली सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारों से अलौकिक बनाती है।
अल्मोड़ा की बाल मिठाई | Bal Mithai of Almora
अल्मोड़ा के मिठास भरे वातावरण में अल्मोड़ा की बाल मिठाई अत्यधिक लोकप्रिय है। अल्मोड़ा से प्रत्येक सैलानी इस मिठाई को उपहार के रूप में अवश्य खरीदना चाहता है। खास बात यह है कि बाल मिठाई अल्मोड़ा के अलावा अन्य स्थानों पर भी मिल जाती है, लेकिन जो जायका अल्मोड़ा की बाल मिठाई का है वह अन्यत्र नहीं मिलता।
तांबे के बर्तन के लिए प्रसिद्ध अल्मोड़ा | Almora famous for copper utensils
तांबे के बर्तनों के लिए भी अल्मोड़ा खासा लोकप्रिय है। वर्तमान समय में आयुर्वेद चिकित्सा की लोकप्रिय होती विधा में तांबे के बर्तन का पानी पीने के महत्व से अल्मोड़ा के तांबे के फिल्टर गिलास, लोटे, गागर, घड़े और पूजा के बर्तन देश-विदेशों में लोकप्रिय हैं।
कुमाऊँ की प्रसिद्ध ऐपण कला | Famous Aipan Art of Kumaon
कुमाऊँ की प्रसिद्ध ऐपण कला का केन्द्र भी अल्मोड़ा रहा है। ऐपण व रंगोली के विभिन्न उत्पाद यहाँ के उपहार हैं। विभिन्न पूजा-अर्चनाओं में विषयानुसार ऐपण कला से सजी चौकियाँ लक्ष्मी चौकी, गणेश चौकी और नन्दा चौकी जैसे उत्पाद विशेष स्मृति चिह्न के रूप में लोकप्रिय हैं।
ऐपण से तात्पर्य लीपने या सजावट करने से है, जो कि किसी मांगलिक या धार्मिक अवसर पर देहरी या आंगन में विस्वार (चावल के आटे का घोल) तथा लाल या सफेद मिट्टी से सुंदर चित्रों के रूप में मनाई जाती है। इसके तहत सूर्य, चंद्र, स्वास्तिक, संख घंटा, विविध पुष्पा, बेल आदि आकृतियाँ बनाई जाती हैं। इन्हीं आकृतियों को चौक, रंगोली, अल्पना आदि नामों से जाना जाता है।
ऐपण महिलाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति, आंकिक चित्रों के रूप में अल्पना या ऐपण द्वारा प्रकट होती है। ऐपण के स्थूल रूप में दो भेद हैं- पहला भू – अंकन तथा दूसरा भित्ति – चित्र। ऐपण का मूल अर्थ है लीपना। यह चित्रप्रथा समतल धरती पर अंकित रंगोली तथा दीवारों पर अंकित थापा कहलाती है। बंगाल में इसे अल्पना, महाराष्ट्र व गुजरात में रंगोली, तमिलनाडु में झेलम तथा मध्यप्रदेश में मंडाना कहते हैं। ऐपण के लिए भिगाये गये चावलों को पीसकर महीन पेस्ट बनाया जाता है, जिसे बिस्वार कहते हैं। वर्तमान में बिस्वार के स्थान पर सफेद पिण्डोल (कमेड़ा) मिट्टी का भी प्रयोग किया जाने लगा है।
ऐपण लिखने की परम्परा कुमाऊँ मंडल में अधिक प्रचलित है। इन्हें महिलाओं द्वारा ही लिखा जाता है। इनके नाम, स्थान और अनुष्ठान अनुरूप होते हैं। लक्ष्मी पूजा वाले ऐपण को ‘लक्ष्मी पूजा’ तथा शिव की पूजा वाले ऐपण को ‘शिवपीठ’ कहते हैं। यज्ञोपवीत संस्कार के अवसर पर जनेऊ, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं सरस्वती का ऐपण के माध्यम से चित्रांकन किया जाता है। ऐपणों में मुख्यतः स्वास्तिक, नवग्रह तथा लक्ष्मी – सरस्वती के पदचिह्न बनाए जाते हैं। ऐपण वाले स्थान, यथा- पूजाघर, घर का आँगन, दहलीज, सीढ़ियाँ, जो प्रायः कच्ची होती हैं, को पहले गोबर – मिट्टी के मिश्रण से लीपा जाता है। इस प्रकार स्थान की शुद्धि के पश्चात उन्हें गेरू से पोत दिया जाता है।
सूखने पर उँगलियों को बिस्वार में डुबोकर ऐपण बनाए जाते हैं। प्रदेश के उत्तरी सीमांत जनपद , पिथौरागढ़ में इस शैली को ‘खाट’ कहते हैं। आँगन में लिखे जाने वाले ऐपण ‘ खोली के ऐपण ‘ कहलाते हैं। यहाँ साधारणतः घर के प्रवेशद्वार को ‘ देली ‘ कहा जाता है। ‘फूलदेई’ के विशेष पर्व पर घर की देली को अत्यधिक आकर्षक कलाकृतियों से सजाया जाता है, जिसे ‘देली ऐपण’ कहते हैं। पूजास्थल की बेदी, विवाह के अवसर पर द्वारपूजा की चौकी तथा नामकरण के अवसर पर सूर्यदर्शन चौकियाँ भी ‘ऐपण’ विधि से अलंकृत की जाती हैं। इस प्रकार का ऐपण ‘चौखे’ कहलाता है।
प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions for competitive exams
- विविध फल बागानों के लिए प्रसिद्ध है – जालना
- फलोद्यान के देश के नाम से जाना जाता है – चौबटिया
- कुमाऊं में केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिर कहाँ स्थित है – द्वाराहाट
- पर्यटकों की नगरी उपनाम किस जगह का है – रानीखेत बाल मिठाई घर, ताम्र नगरी उपनाम किस जगह का है – अल्मोड़ा
- किस स्थान का प्राचीन नाम राम क्षेत्र – अल्मोड़ा क्षेत्र
- नाट्य एवं संगीत अकादमी की स्थापना 19 अक्टूबर 2002 को कहाँ की गई – फलसीमा (अल्मोड़ा में)
- भातखंडे हिंदुस्तानी संगीत संस्थान के तीन महाविद्यालय हैं – देहरादून अल्मोड़ा एवं पौड़ी में
- लोक कला संस्थान की स्थापना कहाँ की गई है – अल्मोड़ा में
- नंदा देवी मेला कहां आयोजित किया जाता है – अल्मोड़ा के नंदा देवी परिसर में
- श्रावणी मेला कहां आयोजित किया जाता है – जागेश्वर धाम, अल्मोड़ा
- सोमनाथ मेला कहां आयोजित होता है – रानीखेत के पास अल्मोड़ा
- गणनाथ मेला कहां आयोजित होता है – गणनाथ तालुका, अल्मोड़ा
- स्याल्दे-बिखौती मेला कहां आयोजित होता है – द्वाराहाट, अल्मोड़ा
- बिनाथेश्वर मेला प्रतिवर्ष कहां आयोजित होता है – अल्मोड़ा
- प्रति वर्ष फरवरी माह में गोलज्यू महोत्सव का आयोजन कहाँ होता है – चितई, अल्मोड़ा में
- प्रति वर्ष जुलाई में सालम रंग महोत्सव का आयोजन कहाँ होता है – अल्मोड़ा में
- उरेडा का मुख्यालय कहाँ स्थित है – अल्मोड़ा
- पंचाचुली वूलन उद्योग कहां स्थापित है – अल्मोड़ा
- हरिप्रसाद टम्टा परंपरागत शिल्प उन्नयन केंद्र कहां स्थापित है – गरुड़ाबांज, अल्मोड़ा
- बेंत फर्नीचर उद्योग देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल के अलावा कहाँ स्थापित है – अल्मोड़ा
- ऊनी सालों तथा ताम्र शिल्प के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध स्थान कौन सा है – अल्मोड़ा
- इंडियन मेडिसिन फार्मास्यूटिकल लिमिटेड कहाँ स्थापित है – मोहान, अल्मोड़ा
- कोऑपरेटिव ड्रग्स फैक्ट्री कहाँ स्थापित है – रानीखेत, अल्मोड़ा
- कुमाऊँ इंजीनियरिंग कॉलेज (रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज) स्थित है – द्वाराहाट, अल्मोड़ा
- वार्षिक पत्रिका पुरवासी कहाँ से प्रकाशित होती है – अल्मोड़ा
- अल्मोड़ा के डिबेटिंग क्लब द्वारा 1871 से ‘अल्मोड़ा अखबार’ साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू हुआ। 1871 से 1913 तक इसके संपादक बुद्धि बल्लभ पंत, लीलानंद जोशी, सदानंद सनवाल, विष्णु दत्त जोशी आदि रहे। 1913 से 1918 तक इसके संपादक बद्रीदत्त पांडे रहे।
- 1918 में अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद बद्री दत्त पांडे ने 1918 से ही अल्मोड़ा से ‘शक्ति’ नामक साप्ताहिक पत्र शुरू किया जो आज भी जारी है।
- 1930 से विक्टर मोहन जोशी द्वारा ‘स्वाधीन प्रजा’, 1934 से मुंशी हरिप्रसाद टम्टा द्वारा ‘समता‘, व 1939 से सोबन सिंह जीना द्वारा ‘पताका’ का प्रकाशन किया गया। ये सभी साप्ताहिक थे, व अल्मोड़ा से निकलते थे।
- जी• बी• पंत हिमालयी पर्यावरण एवं विकास संस्थान कहाँ स्थित है – कटारमल, अल्मोड़ा
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च कहाँ स्थित है – ताड़ीखेत, अल्मोड़ा
- ड्रग्स कंपोजिट रिसर्च यूनिट कहाँ स्थित है – रानीखेत, अल्मोड़ा
- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान जिसे 1924 में स्थापित किया गया था कहाँ स्थित है – अल्मोड़ा
- उत्तराखंड सेवा निधि एवं पर्यावरण शिक्षा संस्थान कहाँ स्थित है – अल्मोड़ा
- रक्षा कृषि शोध संस्थान कहाँ स्थित है – अल्मोड़ा
- उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास निगम कहाँ स्थित है – अल्मोड़ा
- कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय कहाँ स्थित है – रानीखेत, अल्मोड़ा
- गढ़वाल राइफल का गठन 5 मई 1887 को कहाँ हुआ था – अल्मोड़ा में
- 1/3 गोरखा रेजिमेंट का गठन कहाँ था – अल्मोड़ा (1918 में)
- पंडित गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय की स्थापना 1979 में कहाँ की गई थी – अल्मोड़ा में
- क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी मूल रूप से हैं – ल्वाली गांव, अल्मोड़ा के
- राज्य का सबसे बड़ा मंदिर समूह कहाँ स्थित है – जागेश्वर, अल्मोड़ा में
- लाखु गुफा, ल्वेथाप व पेटशाल आदि पुरास्थल स्थित हैं – अल्मोड़ा में
- अल्मोड़ा की मुद्राओं पर जिन कुणिन्द शासकों के नाम है वह हैं – आसेक, गोमित्र, हरदत्त, शिवदत्त आदि
- 1563 इसी में चंद वंश के किस शासक ने अपनी राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा बनाई – बलदेव या बालों कल्याण चंद ने
- अल्मोड़ा शहर के मध्य में स्थित मल्ला महल किले का निर्माण किस शासक ने कराया था – रूद्र चंद्र
- अल्मोड़ा के पलटन बाजार स्थित लाल मंडी किले (फोर्ट मोयरा) का निर्माण कराया था – कल्याण चंद्र ने
- अल्मोड़ा जिले में स्थित खगमरा किले का निर्माण करवाया था – राजा भीष्म चंद ने
- राज्य की भाषा (कुमाऊँनी) में प्रथम अखबार का प्रकाशन अल्मोड़ा से कब शुरू हुआ – 1871 ई में
- अल्मोड़ा में राजनीतिक संचेतना बढ़ाने के लिए डिबेटिंग क्लब की स्थापना हुई – 1870
- राजनीतिक चेतना के विस्तार के लिए अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना कब हुई – 1912
- नमक सत्याग्रह के दौरान अल्मोड़ा नगर पालिका भवन पर कुन्ती वर्मा, जीवन्ती, मंगला व रेवती आदि महिलाओं ने किसके नेतृत्व में तिरंगा फहराया था – विश्नीशाह देवी
- राज्य में स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए सर्वप्रथम 1871 में अल्मोड़ा से बुद्धि बल्लभ पंत के संपादकत्व में शुरू किया गया – अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन
- अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद संपादक बद्री दत्त पांडे ने सितंबर 1918 से कौन सा साप्ताहिक निकालना शुरू किया – शक्ति
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