दूधातोली – उत्तराखण्ड का पामीर | Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

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उत्तराखण्ड में लघु हिमालय क्षेत्र के अन्तर्गत 2000 से 2400 मीटर की ऊँचाई पर एक साथ तीन जिलों चमोली, पौड़ी तथा अल्मोड़ा की सीमाओं में पसरे हुए महावन दूधातोली श्रृंखला को उत्तराखण्ड का पामीर (Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand) कहा जाता है। इस श्रेणी पर बुग्याल, चारागाह तथा बाज, खर्सू व कैल वृक्षों के सघन वन हैं। यहाँ से पश्चिमी रामगंगा, आटागाड़, पश्चिमी नयार, पूर्वी नयार तथा वूनों आदि पाँच नदियाँ निकलती है। 

दूधातोली की प्राकृतिक सुंदरता | Natural beauty of Dudhatoli

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

मध्य हिमालय पर्वत श्रृंखला में फैला यह विशाल खूबसूरत जंगल जो उत्तर-दक्षिण दिशा में लगभग 25 किमी की दूरी तक फैला है, उत्तराखण्ड में पौड़ी गढ़वाल जिले की थैलीसैंण तहसील के पास से शुरू होता है तथा चमोली जिले में गैरसैंण इसकी पश्चिमी सीमा बनाता है और पौड़ी में सियोली-खण्ड क्षेत्र इसका सबसे उत्तरी क्षेत्र है। दूधातोली पर्वत श्रृंखला की कुछ शाखाएं उत्तर में चमोली में नौटी-छतौली-नंदासैण, पश्चिम में पैठानी (पौड़ी गढ़वाल) और दक्षिण-पूर्व में महलचौरी तक जाती हैं। मूसा-का-कोठा, दूधातोली रेंज की सबसे ऊँची चोटी है जो नाग टिब्बा से लगभग सौ मीटर ऊँची है। दूधातोली पहाड़ों का मुख्य क्षेत्र, जिसे दूधातोली डाण्डा के नाम से जाना जाता है, की औसत ऊंचाई 2900 से 3000 मीटर है।

दूधतोली के खूबसूरत हरे-भरे घास के मैदानों का उपयोग सैकड़ों वर्षों से मवेशियों, भेड़ों और बकरियों के चरने के लिए किया जाता रहा है। मवेशियों को इस उच्च हिमालयी विशाल पहाड़ी ढलानों में उगने वाली, स्वादिष्ट व रसीली घास खूब पसंद आती है। स्वच्छ पर्यावरण में उगी यह घास अच्छी गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करती है। पशु-चरवाहे यहाँ अपनी छोटी-छोटी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। इन चरागाहों में अपने मवेशियों के साथ ये चरवाहे कई टन मक्खन और घी का उत्पादन करते हैं। एक समय था जब 50000 गायों और भैंसों को इन उजाड़ पहाड़ों में बिखरे हुए अस्थायी खलिहान, गढ़वाली में जिन्हें खार्क या छन्नी के रूप में जाना जाता है, में रखा जाता था।

गर्मी के मौसम की शुरुआत में, इन पशु-चरवाहों को अभी भी अपनी पीठ पर बंधे बैग और सामान के साथ पहाड़ पर अपनी वार्षिक यात्रा करते हुए देखा जा सकता है। वे सर्दियों के मौसम की शुरुआत में अपने मैदानी इलाकों में बने घरों में उतर जाते हैं।

दूधातोली का अर्थ | Etymology

दूधातोली शब्द गढ़वाली भाषा का एक मिश्रित शब्द है जो “दूध-की-तौली” से बना है। तौली का अर्थ हिन्दी में “कटोरा या कड़ाही” होता है। अंग्रेजी में “दूध की कड़ाही” का अनुवाद करता है। यहाँ हिमाचल व पहाड़ी चरवाहे जिन्हें गद्दी, मरछे या गुजर आदि नामों से जानते हैं पशु चराने आते हैं। यहाँ राज्य के एवं हिमाचल के पशुचारक खरक बनाकर रहते हैं। मखमली घास के मौसम में काफी अधिक मात्रा में ये पशुचारक दूध की पैदावार करते हैं इसलिए इस क्षेत्र को दूधातोली कहा जाता है। दूधातोली यानी दूध का कटोरा। 

दूधातोली का इतिहास | History of Dudhatoli

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

बात अगर दूधातोली उत्तराखण्ड का पामीर (Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand) के इतिहास की करें तो हमें पता चलता है कि ब्रिटिश शासनकाल में चांदपुर परगना दूधातोली के चारो ओर फैली चांदपुर सेली, चांदपुर तैली, लोहबा, रानीगढ़, ढाईज्यूली, चौपड़ाकोट, चौथान व श्रीगुर पट्टियों को मिलाकर बनाया गया है। 1960 के दशक में चमोली जिले के गठन के साथ भौगोलिक रूप से दूधतोली का विभाजन हो गया और दूधातोली के काश्तकर दो प्रशासनिक इकाइयों में बंट गये। हालाकिं दूधातोली में हक़-हकूक धारक चोकोट पट्टी पहले ही अल्मोड़ा जिले का हिस्सा थी।

1912 में जंगलात विभाग द्वारा जारी सूची में चांदपुर, लोहबा, चौथान, चौकोट, ढाईज्यूली व चौपड़ाकोट के निवासियों को दूधातोली जंगल का हक दिया गया। वहाँ पशुपालको को खरक बनाने हेतु भूमि आवटित है और पशुपालन का अधिकार भी, न केवल उक्त गाँवो को बल्कि हिमालय के गददी व गूजरों के पशु भी नियमित रूप से दूधातोली में देखे जा सकते है। 6 पट्टियों के 50 गाँवो के 800 पशुपालकों के 99 खरक भी दूधातोली में विघमान है। विस्तृत चरागाह के क्षेत्र दूधातोली अपने नाम के अनुरूप दूध की तौली (दूध का बड़ा बर्तन) है। उसके चरागाह उससे जुड़े ग्रामीण के लिए अत्यन्त लाभदायी थे।

दूधातोली की भौगोलिक स्थिति | Geographical location of Dudhatoli

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand
दूधातोली से नजर आता खूबसूरत चौखम्भा शिखर

उत्तराखण्ड राज्य के भौगोलिक केंद्र में स्थित दुधातोली खूबसूरत पहाड़ी ढलान वाला क्षेत्र है। प्राचीन और मध्ययुगीन काल में, प्रशासन की सुविधा के लिए पूरे गढ़वाल साम्राज्य को विभिन्न पट्टियों और परगनों में विभाजित किया गया था। इन पट्टियों व परगनों के नाम गढ़वाल के राजा अपने नाम पर रखते थे। आज वर्तमान समय में भले ही राजशाही चली गई हो, लेकिन पट्टी और परगना की प्रणाली अभी भी जीवित है।

दूधातोली क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत भाग पौड़ी गढ़वाल जिले (चौथान, चोपड़ाकोट और धैज्युली की पट्टी) में आता है, जबकि शेष भाग (40%) चमोली गढ़वाल (चांदपुर और लोहभा की पट्टी) का एक हिस्सा है। इन पांच पट्टियों के ऊँचे-ऊँचे क्षेत्र दूधतोली श्रेणी का निर्माण करते हैं। दुधातोली रेंज का उत्तर-पश्चिमी स्पर  रुद्रप्रयाग में जसोली गांव के ऊपर हरियाली कांथा मंदिर और पौड़ी गढ़वाल में डोबरी गांव से जुड़ता है।

दूधातोली और इसके आसपास की तलहटी नदी के किनारे के क्षेत्रों का एक जटिल नेटवर्क बनाती है और यह राज्य में सबसे घने और साथ ही सबसे बड़े समशीतोष्ण चौड़ी पत्ती और शंकुधारी जंगलों में से एक है। वेस्ट हिमालयन फ़िर (एबिस पिंड्रो), स्प्रूस , देवदार (सेड्रस देवदरा), पाइन, मेपल, चेस्टनट, हॉर्नबीम, एल्डर, हेज़लनट आदि यहाँ के आम पेड़ हैं। इसके अलावा, यहाँ कई औषधीय जड़ी-बूटियाँ, झाड़ियाँ और जंगली फल पाए जाते हैं, जिनमें से जंगली अजवायन, गलंगल, बरबेरिस, रास्पबेरी, आंवला, रोज़ हिप, हिमालयन स्ट्रॉबेरी का पेड़ (बेंथम का कॉर्नेल / कॉर्नस कैपिटाटा ), रेडकरंट और ब्लैककरंट हैं। दूधातोली पहाड़ कई गैर-हिमनद बारहमासी नदियों का स्रोत हैं; नायर-ईस्ट, नैयर-वेस्ट (सतपुली में एक दूसरे के साथ विलय) और रामगंगा (पश्चिम) प्रमुख हैं, यह क्षेत्र अछूते कुंवारी सुंदरता का एक अद्भुत देश है और इसमें पर्यटकों के आकर्षण के रूप में विकसित होने की बहुत बड़ी संभावना है।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी का नेहरू को प्रस्ताव | Veer Chandra Singh Garhwali’s proposal to Nehru

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली यहाँ से बहुत प्रभावित थे। यही कारण था कि उन्होंने सन् 1960 में नेहरू जी इस दूधातोली क्षेत्र को भारत की ग्रीष्मकाल राजधानी बनाने की माँग की थी। यहीं कोदियाबगड़ में उनकी समाधि भी है। प्रतिवर्ष 12 जून को उनकी याद में यहाँ मेला लगता है। उत्तराखण्ड की वर्तमान ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण इसी क्षेत्र में है।
      दूधातोली क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ है। थलीसैंण आखरी बस स्टेशन है जो पौड़ी से 100 किमी की दूरी पर है, जहाँ से दूधातोली ट्रैक 24 किमी दूर है। यहाँ से हिमालय पर्वतमाला और आस-पास के क्षेत्रों का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। 

दूधातोली का पारिस्थितिकीय एंव पर्यावरणीय महत्व | Ecological and environmental importance of Dudhatoli

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

अबतक आपको दूधातोली (Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand) की खूबसूरती का एहसास तो हो ही गया होगा। पर अब हम आपको इस हिमालयी घास के मैदान की संवेदनशीलता के विषय में कुछ बताएँगे। यह मध्य हिमालय क्षेत्र का अतिसंवेदनशील क्षेत्र है। इसका भौगोलिक वातावरण पिछले कुछ दशकों में आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तित हुआ है। अत्यधिक मानव हस्तक्षेप एंव प्रकृति के साथ छेडछाड करने के कारण दूधातोली में कई पर्यावरणीय समस्याओं ने जन्म लिया है। यहाँ पर उभरी मुख्य पर्यावरणीय समस्याओं में, उसके ऊपरी भाग से लगातार सिमटते वन प्रमुख हैं। हिमपात में टूटे वृक्षो के साथ स्थानीय जनता का अपनी जरूरतों के लिए प्रयोग और 67-70 के दशक तक वनो का अंधाधुंध दोहन की नीतियाँ, इस खली सपाट बनती श्रंखला के लिए जिम्मेदार है।

खरकों के निर्माण में प्रतिवर्ष खपने वाली लगभग सौ घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है। दूधातोली में वृक्षारोपण के व्यापक कार्यक्रम लाभदायी हो सकते हैं क्योंकि प्राकृतिक रूप से बीज निचले हिस्से में तो आसानी से आते है, लेकिन ऊँचाई की ओर नहीं जा सकते है। यदि वनो के यहीं घटने का क्रम रहा तो वो हिम जमने की क्षमता और अंतत: नदियों के सदानीर रूप को प्रभावित करेगा।

दूधातोली के पारिस्थितिक महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि यह दर्जनों धाराओं और 5 बारहमासी गैर-हिमनद नदियों का स्रोत है। स्थानीय लोग और चरवाहे सैकड़ों वर्षों से यहाँ पाए जाने वाले औषधीय पौधों का उपयोग कर रहे हैं जबकि घुमंतू और चरवाहे गर्म और बरसात के महीनों के दौरान यहाँ केवल अस्थायी निवासी होते हैं, यह अभी भी तेंदुए, जंगली बिल्लियों, भालू, जंगली सूअर, साही, जंगली मृग-बकरी (घोरल), हरे (जंगली खरगोश) जैसे कई जंगली जानवरों द्वारा स्थायी रूप से बसा हुआ है। दर्जनों पक्षी प्रजातियों का जिनमें तीतर सबसे प्रमुख है यह रैनबसेरा है।

चूंकि मार्च के अंत तक इन पहाड़ों की ऊंचाई बर्फ से ढकी होती है, इसलिए पिघलती हुई बर्फ धीरे-धीरे मिट्टी में समा जाती है और जल स्तर को रिचार्ज कर देती है। जून तक, बारिश आ जाती है, जिससे नदियाँ और धाराएँ बारहमासी हो जाती हैं। नमी जंगल और घास के मैदानों को सदाबहार रखती है। हालांकि, 1970 के दशक में जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण, इस क्षेत्र को बहुत नुकसान हुआ है और यह अभी भी अपने घटते जंगलों और खंडित लकीरों को ठीक कर रहा है और फिर से जीवंत कर रहा है। यह एक भ्रम पैदा करता है, क्योंकि कुछ वृक्षविहीन लकीरें वृक्ष-रेखा से ऊपर प्रतीत होती हैं। लेकिन वास्तव में, सबसे ऊंची लकीरें ट्री-लाइन के नीचे 500 मीटर (लगभग 1500 फीट) के करीब हैं।

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

वनों के घटते आवरण का एक अन्य कारण यह है कि पेड़ों के बीज हवा और गुरुत्वाकर्षण की क्रिया से नीचे की ओर फैलते हैं, ऊपरी ढलानों पर जंगल के फैलाव को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च ऊँचाई पर पेड़ धीरे-धीरे मर जाते हैं। क्योंकि कुछ वृक्षविहीन मेड़ वृक्ष-रेखा के ऊपर प्रतीत होते हैं। लेकिन वास्तव में, सबसे ऊंची लकीरें ट्री-लाइन के नीचे 500 मीटर (लगभग 1500 फीट) के करीब हैं। वनों के घटते आवरण का एक अन्य कारण यह है कि पेड़ों के बीज हवा और गुरुत्वाकर्षण की क्रिया से नीचे की ओर फैलते हैं, ऊपरी ढलानों पर जंगल के फैलाव को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च ऊंचाई पर पेड़ धीरे-धीरे मर जाते हैं।

दूधातोली कैसे पहुँचे | How to reach Dudhatoli

Dudhatoli-Pamir of Uttarakhand

उत्तराखण्ड के पामीर दूधातोली आप दो जगह से पहुँच सकते हैं। पहला रास्ता आप पौड़ी गढ़वाल जिले के थैलीसैंण से ले सकते हैं व दूसरा चमोली जिले के गैरसैण से। थैलीसैंण की तरफ से आने वाले यात्री थैलीसैंण से 22 किमी दूर पीठसैण पहुँचते हैं व उसके बाद पीठसैण से 24 किमी का ट्रैक करके दूधातोली पहुँचते हैं। अगर आप गैरसैण (चमोली) की तरफ से दूधातोली पहुँचना चाहते हैं तो आप गैरसैण से भराड़ीसैण तक गाड़ी से पहुँच सकते हैं व यहाँ से 10 से 12 किमी का ट्रैक करके दूधातोली पहुँच सकते हैं।

मुख्य शहरों से दूधातोली की दूरी | Dudhatoli distance from main cities

देहरादून254 किलोमीटर
दिल्ली – 387 किलोमीटर
हल्द्वानी – 185 किलोमीटर
चण्ड़ीगढ – 423 किलोमीटर
श्रीनगर – 108 किलोमीटर
कोटद्वार – 214 किलोमीटर

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