केदारनाथ | Kedarnath Temple

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पंच केदारों में केदारनाथ प्रथम केदार है। भारतवर्ष के हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में विहंगम हिमाच्छादित पाड़ियों की ओट में स्थित बाबा भोलेनाथ का परम धाम केदारनाथ शंकराचार्य द्वारा भारत के चार कोनो में स्थापित चार धामों में से एक है। केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के शीर्ष पर स्थित है।

इस मंदिर की महत्ता के कारण ही गढ़वाल का प्राचीन नाम केदारखण्ड पड़ा था। इस ब्लॉग के माध्यम से हमने केदारनाथ के संपूर्ण भौगोलिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने का प्रयास किया है। यहाँ हमने केदारनाथ से संबंधित संपूर्ण जानकारी को साझा किया है। आइए हिमालय की गोद में स्थित शिव के धाम केदारनाथ को और करीब से जानते हैं।

जिस राज्य में स्थित है - उत्तराखण्ड
जिस जिले में स्थित है - रूद्रप्रयाग
केदारनाथ मंदिर की समद्रतल से ऊँचाई - 3,583m (11,755ft)
पंच केदारों में - प्रथम केदार
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केदार शब्द का अर्थ

केदार शब्द का अर्थ दलदल अथवा कीचड़ है। केदारपुरी ऐसी भूमि में पाई जाती है जो प्रायः चलते समय पांव के तले दलदलाती है। वह भूमि जलमय है, इसी से उस तीर्थ का नाम केदार हुआ और शिव जी का नाम केदारनाथ हुआ। यह सब यहाँ पर स्थित हिम के सैलाब के कारण से है। ग्लेशियरों से लगातार पानी के रिसाव के कारण यहाँ आसपास की भूमि नमी युक्त होती है।

केदारनाथ कहाँ स्थित है?

पंच केदार | Panch Kedar
बर्फ की चादर में ढका धरती पर शिव का धाम केदारनाथ

केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल परगना नागपुर पट्टी मल्ला कालीफाट में हिमालय की गोद में समुद्र तट से 11,755 फीट की ऊँचाई पर केदारभूमि पर पहाड़ की जड़ पर महापथ हिमालय की चोटी के नीचे सम धरातल पर मंदाकिनी नदी की घाटी में स्थित है। यह मंदिर खर्चाखंड, भरतखंड और केदारखंड शिखरों के मध्य स्थित है। इसके वाम भाग में पुरंदर पर्वत है।

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है केदारनाथ

गढ़वाल क्षेत्र में हिमालय में स्थित केदारनाथ धाम भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ये संख्या में 12 है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखण्ड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघृष्णेश्वर।

हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है। प्रत्येक ज्योतिर्लिङ्ग का एक एक उपलिंग भी है जिनका वर्णन शिव महापुराण की कोटिरुद्र संहिता के प्रथम अध्याय से प्राप्त होता है। उत्तराखण्ड देवभूमि स्थित में पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग, पंच धाराएँ एंव पंच शिलाएँ इस पवित्र भूमि की पवित्रता एंव अध्यात्मिकता को दर्शाती हैं। 

 

केदारनाथ मंदिर की निर्माण शैली

देवभूमि उत्तराखण्ड में स्थित केदारनाथ धाम का मंदिर कत्यूरी निर्माण शैली में बनाया गया है। इसके निर्माण में भूरे रंग के विशाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर छत्र प्रसाद युक्त है। मन्दिर के ऊपर पत्थर का ‘शिखर’, जिसके काष्ठ-छत्र सोने का कलश है, एक मनोहर दृश्य प्रस्तुत करता है। इसके गर्भ गृह में त्रिकोण आकृति की एक बहुत बड़ी ग्रेनाइट की शिला है जिसकी पूजा भक्तगण करते हैं। ग्रेनाइट के इस लिंग के चारों ओर अर्घा है जो अति विशाल है और एक ही पत्थर का बना है।

इसी स्वयंभू केदारलिंग की उपासना पांडवों ने भी की थी। सभा मंडप में चार विशाल पाषाण स्तंभ है तथा दीवारों के गौरवों में नव नाथों की मूर्तियां हैं। दीवारों पर सुंदर चित्रकारी भी की गई है। मंदिर के बाहर रक्षक देवता भैरवनाथ का मंदिर है। यहाँ अनेक कुंड हैं जिनमें शिव कुंड मुख्य है। एक लाल पानी वाला रुधिर कुंड भी है।

कत्यूरी शैली में निर्मित इस मंदिर का काष्ठवेष्ठिनी युक्त शिखर, स्वर्ण कलश के नीचे का ताम्रछत्रों का आच्छादन तथा गर्भ गृह में कत्यूरी शैली में लिखें अभिलेख, गढ़वाल के गौरवशाली अतीत को प्रदर्शित करते हैं।

केदारनाथ मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और सभामंडप तीन भाग हैं। गर्भगृह चार स्तंभों पर आधारित और लगभग 3 मीटर मोटी दीवारों वाला है। इसका द्वार अलंकृत है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप स्पष्ट तथा जीर्णोद्धार का परिणाम है। सूक्ष्म निरीक्षण से लगता है कि मंदिर ने तीन उत्थान देखे हैं। प्रथम उत्थान लेख और मूर्तियों से इसे गुप्तोत्तर काल से जोड़ता है। गर्भगृह, अंतराल द्वार, अलंकरण तथा मंदिर की मूर्तियां द्वितीय उत्थान की ओर संकेत करती हैं।

जबकि तृतीय स्थान 18वीं सदी के अंत में शिखर के जीर्णोद्धार तथा मंडप जोड़ने से हुआ। गुजरात के राजा कुमार पाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1160-70 के मध्य कराया था। 5-6 सदियों के उपरांत संस्कार रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1765-95 में मंदिर का तब जीर्णोद्धार कराया था जब मूल निर्माण क्षतिग्रस्त हो गया था।

केदारनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास

पंच केदार | Panch Kedar
केदारनाथ धाम का एक पुराना चित्र

‘वायुपुराण’ में लिखा है कि जब परमात्मा ने मानव सृष्टि उत्पन्न की थी उसी समय नर-नारायण को उसकी रक्षा के लिए भेजा। उन्होंने जगत के कल्याण के निमित्त गंधमादन पर्वत पर उग्र तब करके भगवान आशुतोष को प्रश्न किया। शिव जी प्रसन्न हुए और नर-नारायण को दर्शन देकर ‘वरंव्रूहि’ कहने लगे। नर-नारायण ने विनय की, प्रभु! हम विश्व के कल्याण के निमित्त आपका स्मरण करते हैं।

यदि आप हमारी सेवा से प्रसन्न हैं तो यह वर प्रदान करें कि आप सदैव प्रकट रूप में इन पर्वतों पर विराजमान रहें, जिससे संसार के जीव आपके दर्शन से मुक्ति लाभ करते रहें। भगवान भोलेनाथ ने नर-नारायण की प्रार्थना स्वीकार करके इस केदारभूमि को अपना स्थाई निवास स्थान स्वीकार किया। तब से या परम पावन तीर्थ केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कथा यह है कि जब पाण्डव राजपाट छोड़कर हिमालय में केदारनाथ के दर्शन के लिए गए थे तब शिवजी ने उनको गोत्र हत्या का दोषी जानकर शिला रूप होकर पृथ्वी के भीतर घुसना चाहा। जिस बीच अग्रभाग पृथ्वी के अंदर घुस सका था कि उसी बीच महाबली भीम सेन ने पृष्ठ भाग को पकड़ लिया।

तब शिवजी ने प्रसन्न होकर पाण्डवों को दर्शन दिया था जिससे उनका गोत्र हत्या का पाप नष्ट हो गया था। वही शिला रूप अब ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसी भी गाथा है कि अग्रभाग जो पृथ्वी में घुस गया था टूटकर नेपाल में निकला है जो वहाँ पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। शेष भाग उस शिला के हिमालय में चार और जगह पूजे जाते हैं। जो कि पंच केदार (Panch Kedar) नाम से जाने जाते हैं।

पंच केदार
केदारनाथ का प्राचीन एंव दुर्लभ चित्र

इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की थी, किंतु मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा 11वीं-12वीं शताब्दी में कराए जाने का अनुमान है। प्रार्थना कक्ष की दीवारें पौराणिक काल के प्रसिद्ध देवताओं एवं दृश्यों से चित्रित हैं। मंदिर के द्वार पर नंदी बैल की विशाल मूर्ति सजग प्रहरी के रूप में स्थित है।

मंदिर में एक कोणिया आकार की चट्टान भगवान शिव की आराधना के लिए सदा शिव के रूप में है। यह पाँच शैव तीर्थों में से एक है। पहला शैव तीर्थ नेपाल में पशुपतिनाथ, दूसरा कुमाऊँ में जागेश्वर, तीसरा गढ़वाल में केदारनाथ, चौथा हिमाचल में बैजनाथ तथा पांचवा तीर्थ कश्मीर में अमरनाथ है।

गंगोत्री यात्रा के बाद केदारनाथ यात्रा का विधान है। यात्रीगण मंदिर स्थित शिवलिंग में जल चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं। लिंग पर घी लगाना, श्रावण मास में ब्रह्म कमल चढ़ाना तथा रुद्री पाठ करने का विशेष महत्व है।

जब पाण्डव पहुँचे केदारनाथ

वैदिक साहित्यों के अनुसार प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास के सबसे बड़े महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने केदारनाथ आकर अपने निकट संबंधियों की मृत्यु पर प्रेषित किया था। धार्मिक मान्यता है कि यहाँ महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने निकट संबंधियों की मृत्यु पर प्रेषित किया था।

यह माना जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद अपने परिचितों एवं सगे संबंधियों को युद्ध में मारने के कारण पाण्डव स्वयं को दोषी महसूस कर रहे थे। उन्हें अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव के आशीर्वाद की आवश्यकता थी, जबकि शिव पाण्डवों से मिलना नहीं चाहते थे। अतः वे पाण्डवों से निरंतर दूर भागते रहे। उन्होंने केदारनाथ में स्वयं को एक पहल के रूप में परिवर्तित कर लिया। पाण्डवों द्वारा निरंतर पीछा किए जाने के बाद वे सतह पर केवल कूवड़ वाला भाग छोड़कर शेष भाग सहित पृथ्वी में समा गए। भगवान के शरीर के शेष भाग 4 विभिन्न स्थानों पर पुनः प्राप्त हुए।

पंच केदारों में प्रथम है केदारनाथ

Panch Kedar

उत्तराखंड देवभूमि में पंच बद्री की ही तरह ही पंच केदार (Panch Kedar) भी स्थापित है। वैदिक काल में 18 दिन तक चले महाभारत युद्ध के बाद जब पाण्डव अपने संबंधियों को मारने के कारण दोषी महसूस कर रहे थे तो वह अपने इस पाप का प्रायश्चित करने उत्तराखण्ड की भूमि पर आए। यहाँ उन्होंने महादेव शिव की आराधना की। परंतु भगवान शिव उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे। केदारनाथ पहुंचने पर भगवान शिव जब उन्हें देखकर छिपने लगे तो व धरती में समाने लगे तो महाबली भीम ने उनके पष्ठ भाग को पीछे से पकड़ लिया।

जिससे महादेव ने प्रशन्न होकर पाण्डवों को दर्शन दिये। तत्पश्चात पांडवों ने स्वर्गारोहिणी के लिए प्रस्थान किया। महादेव शिव के शरीर के शेष चार भाग विभिन्न स्थानों पर पुनः प्राप्त हुए। इनमें तुंगनाथ में भुजाएं, रुद्रनाथ में मुँह, मद्महेश्वर में नाभि एवं कल्पेश्वर में केश की पूजा उनके प्राप्त स्थलों पर की जाती है। इन्हीं पाँच स्थलों को पंच केदार (Panch Kedar) कहा जाता है। केदारनाथ धाम पंचकेदारों में प्रथम केदार है।

केदारनाथ के रावल

केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी जिन्हें रावल कहा जाता है, दक्षिण के मालाबार के जंगम जाति के होते हैं। रावल को एक से अधिक से शिष्य रखने का अधिकार होता है। उसके शिष्य भी उसी जंगम जाति के दक्षिणी होते हैं। रावल को विवाह करने का अधिकार नहीं है ना उसके शिष्य को इस प्रकार का अधिकार है। रावल स्वयं पूजा नहीं करता, उसके शिष्य और गुरु भाई पूजा करते हैं। रावल के उत्तराधिकारी उसके चेलों में से होते हैं। रावल को मंदिर पर सर्व अधिकार होता है।

जब पाण्डू पुत्र युधिष्ठिरादि स्वर्गारोहणी की तरफ जा रहे थे, उस काल में गणों के स्वामी वीरभद्र से कुछ अवज्ञा हो जाने पर शिवजी ने उन्हें शाप दिया कि तुम मानव जीवन ग्रहण करो अर्थात मनुष्य जन्म लेकर इस अवज्ञा का प्रायश्चित करो। तब वीरभद्र ने आर्त्तस्वर से भगवान भोलेनाथ की स्तुति की।

तब शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम चौल देश में जाकर वेद पाठी ब्राह्मण के घर जन्म लेकर भुकुण्ड नाम से प्रसिद्ध होगे, तब दृढ़ भक्तिपूर्ण मेरा अर्चन-पूजन करते हुए उसी तरह से मेरे समीप आओ। गणाधीश ने शिव शिवाज्ञा शिरोधार्य करके चौल देश में एक वेदपाठी ब्राह्मण के घर जन्म लिया।

उसका नाम वहाँ भुकुण्ड हुआ, और वेद शास्त्र संपन्न होकर युवावस्था में ब्रह्मचर्य धारण करके वाराणसी को चला गया। उसके वह गंगोत्री होते हुए रुद्रनाथ, कल्पेश्वर आदि स्थानों में भक्ति पूर्ण पूजन-अर्चन करता रहा। वहाँ से फिर काशी गया और वहाँ उन्होंने कुछ शिष्य बना लिए।

अपने शिष्यों को साथ लेकर वह केदारपुरी आया। यहाँ आकर उसने शिवजी को प्रसन्न करने के निमित्त उग्र तपस्या की। शिव जी ने प्रसन्न होकर भुकुण्ड को दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा।

तब भूकुण्ड ने विनय किया कि प्रभु यदि आप मुझसे प्रश्न हैं तो मुझे इस मानवीय देह से मुक्ति प्रदान करके पहले की तरह अपनी सेवा में ले लीजिए और आगे आपके परम पुनीत केदारलिंग के पूजन अर्चन की प्रथा सदैव काल के लिए मेरे ही शिष्य संप्रदाय में रहने की आज्ञा प्रदान कीजिए।

तब शिवजी ने भूकुण्ड को मानव देह से मुक्त किया और केदारलिंग के पूजन अर्चन की प्रथा भूकुण्ड के शिष्य संप्रदाय में चलने की आज्ञा प्रदान की। तब से वही प्राचीन प्रथा उसी भूकुण्ड के शिष्य संप्रदाय में चली आ रही है।

केदारनाथ मंदिर के अधीन मंदिर

बद्रीनाथ मंदिर की तरह केदार मंदिर के अधीन भी कुछ मंदिर हैं जिनकी देखरेख और खर्च सब केदार मंदिर के अधीन है। वे मंदिर हैं –
मंदिर अगस्त्यमुनि, गुप्तकाशी, त्रियुगीनारायण, लक्ष्मीनारायण, गौरी देवी, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, कालीमठ, रुद्रनाथ, गोपेश्वर और उखीमठ।

केदारनाथ धाम खुलने की तिथि

देवभूमि उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि सदैव महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान केदारनाथ जी की शीतकालीन पूजा स्थली उखीमठ में वैदिक पंचांग पूजन के बाद घोषित की जाती है और कपाट खुलने के मुहूर्त को वैशाख मास के लिए निकाला जाता है। इस धाम को सदैव भैया दूज (दीपावली) के दिन बंद करने की परंपरा रही है।

शीत ऋतु में कहाँ होती है भगवान केदार की पूजा?

पंच केदार | Panch Kedar
उखीमठ स्थित प्राचीन ओमकारेश्वर मंदिर

शीत ऋतु में केदारनाथ धाम में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं जिस कारण शीत ऋतु में छह माह भगवान केदारनाथ जी की नियमित पूजा उखीमठ स्थित प्राचीन ओमकारेश्वर मंदिर में होती है जहाँ द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर की भोग मूर्ति भी शीतकाल में पूजा हेतु रहती है।

भुकुंट भैरव का मंदिर

पंच केदार | Panch Kedar
खुले आसमान के नीचे केदारनाथ मंदिर से कुछ ऊँचाई पर स्थित भुकुंट भैरव का मंदिर

भुकुंट भैरवनाथ का मंदिर केदारनाथ मंदिर से दक्षिण की ओर स्थित है। भुकुंट भैरवनाथ को केदारनाथ मंदिर का क्षेत्रपाल कहा जाता है।  भुकुंट भैरव का यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से करीब आधा किमी दूर दक्षिण की ओर स्थित है। यहाँ बाबा भैरव की मूर्तियाँ बिना छत के स्‍थापित की गई हैं। बाबा भुकुंट भैरव को केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है। बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ में भुकुंट बाबा की पूजा किए जाने का विधान है और उसके बाद विधिविधान से केदानाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। 

शंकराचार्य की समाधि

पंच केदार | Panch Kedar
केदारनाथ मंदिर के पास नवनिर्मित आदि गुरू शंकराचार्य की समाधि

कहा जाता है कि भारत वर्ष में चार कोनो में चार धाम स्थापित करने के पश्चात आदि गुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष की अवस्था में केदारनाथ में अपने प्राण त्याग दिए थे। आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे है। यह वही स्थान है जहाँ शंकराचार्य समाधिस्थ हुए थे।

आदि गुरु शंकराचार्य की देह त्यागने के संबंध में स्वामी आनंद स्वरूप ने बताते हैं कि जब शंकराचार्य ने चारों धामों की स्थापना करके सनातन धर्म की फिर से स्थापना की तब उन्हें लगा कि जिस उद्देश्य से उनका जन्म हुआ था, वह उन्होंने पूरे कर लिए हैं। वह अपने शिष्यों के साथ केदारनाथ में दर्शन करने पहुँचे। यहाँ उन्होंने शिष्यों के साथ भगवान के दर्शन किए।

शिवलिंग के दर्शन के बाद आदि गुरु शंकराचार्य की भगवान शंकर से बात हुई। उन्होंने उनसे देह त्यागने की अनुमति ली। आदि शंकराचार्य मंदिर से बाहर आए। शिष्यों को रोका और कहा कि पीछे मुड़कर मत देखना। आदि शंकराचार्य यहाँ विलुप्त हो गए। जहाँ पर विलुप्त हुए उसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना की गई। उनका समाधि स्थल बनाया गया।

वर्ष 2013 की आपदा में वर्षों पुरानी समाधि और आदिगुरु की मूर्ति खंडित होकर ध्वस्त हो गई थी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम में आदिगुरु शंकराचार्य और उनकी समाधि स्थल के महत्व को देखते हुए पुनर्निर्माण कार्य में इसे ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार 5 नवंबर 2021 को भगवान शिव के धाम केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया। एक ही शिला काटकर बनाई गई शंकराचार्य की बारह फुट लंबी प्रतिमा का अनावरण करने के बाद प्रधानमंत्री ने उसके समक्ष बैठकर उनकी आराधना भी की।

चौराबाड़ी ताल | Chorabari Lake

केदारनाथ मुख्य मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की ऊँचाई पर ऊपर की ओर गगनचुंबी हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं व में चौराबाड़ी ग्लेशियर की ओट में स्थित खूबसूरत चोराबाड़ी ताल अत्यंत मनमोहक एवं पवित्र ताल है। चोराबारी झील को गांधी सरोवर भी कहते हैं। हरे-भरे बुग्यालों के बीच होकर गुजरकर चोराबारी ताल तक पहुँचना, इस ट्रैक को अत्यंत खूबसूरत व यादगार बना देता है। मानव की पहुँच के अभाव के कारण यह स्थान अत्यंत रमणीक, साफ सुथरा एवं पवित्र है।

चोराबारी झील, जिसे गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, चोराबाड़ी ग्लेशियर के पास 3,900 मीटर (12,800 फीट) की ऊँचाई पर एक हिमनद झील है। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य के केदारनाथ मंदिर से लगभग 2 किमी (1.2 मील) ऊपर की ओर है, जो मंदाकिनी नदी प्रणाली का हिस्सा है।

केदारनाथ में जून 2013 को आई भीषण त्रासदी के कारण झील के पानी एक साथ बह कर नीचे की घाटी में गिर गया, जिससे एक विनाशकारी बाढ़ आई। घटना के बाद झील में सुधार नहीं हुआ क्योंकि अधिकांश मोराइन बह गए थे।

पंच केदार | Panch Kedar

साफ़-सुथरे चौराबाड़ी ताल से उसके आसपास स्थित हिमालय की चोटियों का मनोहारी चित्र देखने को मिलता है। यह गांधी सरोवर या गांधी ताल भी कहलाता है। सन 1948 में महात्मा गांधी की कुछ अस्थियां इस झील में भी विसर्जित की गई थीं, जिसके बाद इसका नाम बदलकर गांधी सरोवर कर दिया गया। किंवदंती के अनुसार, वह चौराबाड़ी ताल ही था, जहां पर भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया था।

रास्ते में मंत्रमुग्ध कर देने वाला मधु गंगा जलप्रपात आता है, जहाँ पर थोड़ी देर रूकने पर गहरी शांति का अनुभव होता है। एक आसान ट्रैक से होते हुए आप मंदिर से इस झील तक पहुँच सकते हैं, जो मूल रूप से कांति सरोवर के नाम से जानी जाती थी।

महाशिला, महापंथ या भैरोंझांप

केदारनाथ से लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर ईशानकोण में एक महाशिला, महापंथ है जिसे स्थानीय भाषा में भैरोंझांप भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस स्थान पर आनेक यात्री स्वर्ग लोक की कामना में प्राण त्याग करते थे। ब्रिटिश काल में यह प्रथा बंद कर दी गई।

केदारकल्प और केदारखण्ड में भी इस बात का जिक्र किया गया है। यात्री केदार निवास, केदार दर्शन, हंस तीर्थ में पित्र तर्पण के बाद ईशानमार्ग से उत्तर दिशा को बढ़ते हुए शिवपुरी स्वर्ग लोक जाने का आह्वान किया करते थे।

ज्ञातव्य है कि बद्रीनाथ में सतोपंथ, गंगोत्री में स्वर्गारोहणी व भैरवझांप नाम पाण्डवों की महापरायण परंपरा को निभाने वालों के दिए नाम हैं। केदारनाथ में सर्वप्रथम जाने वाले यूरोपीय यात्री स्किनर ने 1829 इसी में लिखा कि महापंथ में इस वर्ष प्राण त्यागने वालों की संख्या 15000 थी।

फादर आकले ने लिखा है कि 1831 में इस प्रथा को बंद करने तक यहाँ आत्महत्या का यह उत्सव बाजा बजाते लोगों के जुलूस, मंत्रोच्चारण व मंगल गीतों के साथ होता था। ऐसा कहा जाता है कि अनेक यात्री शिला से कूदने की अपेक्षा हिमशिखर की ओर बढ़ते चले जाते थे जब तक कि बर्फ में समा न जाएँ या अनंत निद्रा में लीन हो जाएँ।

हिमालय की गोद में बसा प्रकृति व ईश्वरीय अनुकंपा से सुसज्जित राज्य उत्तराखण्ड देवों की भूमि हैं। इसका प्राकृतिक सौंदर्य व आध्यात्मिक वातावरण देश-विदेश से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ पर्यटक जहाँ एक ओर मन की शांति व सुखमय पल बिताने के लिए आते हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ प्रकृति प्रेमी देवभूमि की आस्था व इसके दुर्गम स्थलों को करीब से जानने के लिए आतुर रहते हैं।

ऐसे ही दुर्लभ व दुर्गम तालों में से एक है वासुकी ताल। केदारनाथ धाम से 8 किमी दूर 13,300 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह सुन्दर ताल बेहद खूबसूरत एंव पवित्र है। दुर्गम हिमाच्छादित पर्वत चोटियों की तलहटी में स्थित इस झील तक पहुँचने के लिए पंहुचने के लिए मंदाकिनी के तट से लगे पुराने घोड़ा पड़ाव से होते हुए दूध गंगा के उद्गम की ओर सीधी चढ़ाई चढ़नी होती है।

वासुकी ताल

नाक की सीध में 4 किमी की चढ़ाई चढ़कर खिरयोड़ धार (सबसे ऊंची जगह) के बाद पहली बार खुला मैदान दिखता है। यहाँ से 2 किमी हलकी चढ़ाई के बाद केदारनाथ-वासुकी ताल ट्रैक की सबसे ऊँचाई वाली जगह जय-विजय धार (14000 फीट) आती है। इस जय-विजय धार से लगभग 200 मीटर उतरकर वासुकी ताल के दर्शन होने लगते हैं।

ब्रह्मकमल ही ब्रह्मकमल आते हैं नजर

उच्च हिमालयी घाटियों में खिलने वाला देव पुष्प ब्रह्मकमल

जैसे ही पथिक जय-विजय धार को पार करते हैं वैसे ही चारों और ब्रह्मकमल और अन्य जड़ी बूटियों की खूशबू उन्हें मंत्रमुग्ध करना शुरू कर देती है। इतनी ऊँचाई पर ट्रैक करना काफी कठिन व हौंसलों को पस्त करने वाला साबित होता है। लेकिन रह कठिन रास्ता आसपास के मंत्रमुग्ध कर देने वाले रास्तों, हरे-भरे बुग्यालों व फूलों के बीच से होकर गुजरते हुए आसान नजर आने लगते हैं।

पूर्णमासी के दिन यहाँ दिखते हैं वासुकि नाग

स्कंद पुराण के अनुसार वासुकी ताल वास्तव में गंगा के अंग कालिका नदी के जलधारण करने से बना तालाब है, जहाँ नागों के राजा वासुकी हर पल निवास करते हैं। स्कंद पुराण में वर्णित है कि श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन इस ताल में मणि युक्त वासुकि नाग के दर्शन होते हैं। वासुकी ताल की परिधि लगभग 700 मीटर है।

इस तालाब के पानी से सोन नदी निकलती है। यही सोन नदी, केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी से सोनप्रयाग स्थान में मिलती है। वासुकी ताल का पानी बिल्कुल साफ है। हवा के बहाव के साथ पानी में खूबसूरती के साथ बनती तरंगे बेहद खूबसूरत लगती हैं।

हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के अनुसार, रक्षा बंधन के पावन पर्व पर भगवान विष्णु इस झील में स्नान करते हैं।

गौरीकुंड | Gauri Kund

गौरीकुंड का गर्म पानी का तालाब हिंदुओं के लिए पावन स्थलों में से एक है, जहाँ पर वे डुबकी लगाने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड के पावन जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। विहंगम परिदृश्यों से घिरा यह कुंड केदारनाथ मंदिर जाने वाले प्रसिद्ध ट्रैक का आरंभिक बिंदु भी है। यह कुंड गढ़वाल हिमालय में 6,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। श्रद्धालुगण देवी पार्वती को समर्पित गौरी देवी मंदिर के दर्शनों के लिए भी जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह वही जगह है जहाँ पर देवी पार्वती, भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए लंबी अवधि तक ध्यान मुद्रा में रही थी। इस क्षेत्र का संबंध भगवान गणेश की कथा से भी है, यहीं उनके शरीर पर हाथी का सिर जोड़ा गया था।

2013 में आई भीषण त्रासदी व भीम शिला

आझ से 9 वर्ष पूर्व 16 जून 2013 की रात केदारनाथ में आई भीषण त्रासदी उत्तराखण्ड राज्य की अब तक के सबसे बड़ी त्रासदी में से एक थी। चोराबारी ग्लेशियर के आसपास बादल फटने से चोराबारी ताल का रुका हुआ सारा पानी जल प्रलय बनकर केदारनाथ मंदिर की ओर निकल पड़ा। जलप्रलय बनकर आई बाढ़ इतनी भयानक थी कि उसने केदारनाथ मंदिर के आसपास स्थित सभी होटलों, धर्मशालाओं व लाॅजों व अन्य सभी इमारतों को नेस्तनाबूद कर दिया। बादल फटने के कारण प्रलय बनकर बरसा पानी अपने साथ बड़े-बड़े बोल्डरों को साथ लेकर आया जिसने अपने रास्ते में आने वाली हर चीज के अस्तित्व को ही मीटा दिया।

पंच केदार | Panch Kedar
केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे आकर रूका भीम शिला

तभी चौंकाने वाली घटना घटती है और एक बड़ी सी पत्थर की शिला केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे आकर खड़ी हो जाती है मानो किसी ने हाथ से उठाकर एकदम सही जगह पर रखा हो। परन्तु आश्चर्य की बात यह थी इतनी भीषण जलप्रय में मंदिर के ही आकार की यह विशाल शिला जिसका आकार ठीक मंदिर की चौड़ाई जितना है अचानक कहाँ से आई? और इतनी ऊँचाई से लुढकते हुए आकर मंदिर की ठीक पीछे आकर ही कैसे रूक गई?

केदारनाथ मंदिर का कवच बनकर आई इस विशाल शिला को 2013 की त्रासदी के बाद भीम शिला के नाम से जाना जाने लगा। पहली दफा दुनिया ने महादेव शिव का इतना बड़ा चमत्कार अपनी आँखों के सामने देखा था।

पंच केदार | Panch Kedar
दिव्य भीम शिला

मंदिर समिति के सदस्य इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर ये शिला नहीं आयी होती तो मंदिर को बर्बादी से बचा पाना नामुमकिन था। स्वयं आर्कियोलॉजिकल विभाग भी इसके पीछे किसी चमत्कार से इंकार नहीं करता। आखिर इस दिव्य शिला का आपदा के दौरान कैसे प्राकाट्य हुआ, इसे अभी भी नहीं जाना जा सका है। हां, आस्थावान ये जरूर मानते हैं कि स्वयं भगवान शिव की प्रेरणा से ये शिला वहां स्थापित हुई ताकि मंदिर की महिमा पूर्ववत संरक्षित रहे।

यात्रा करने का सही समय | Right time to visit Kedarnath Temple

केदारनाथ यात्रा का सही समय मई माह से अक्टूबर माह तक माना जाता है। अत्यधिक बर्फबारी के कारण अप्रैल माह तक रास्तों में काफी बर्फ जमी होती है जिससे चढ़ाई चढ़ने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और साथ ठंड भी एक मुद्दा बन जाती है।

2022 में कब खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट

इस वर्ष केदारनाथ नाम के कपाट 6 मई 2022 को खुलेगें। प्रातः 6 बजकर 25 मिनट पर भक्तों के लिए भगवान केदारनाथ के कपाट खोल दिए जाऐगें। श्री केदारनाथ धाम उत्तराखंड में स्थित चार धामों में से मुख्य धाम है। हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु एवं शिव भक्त बाबा केदार के दर्शन करने उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। ऊँची बर्फीले हिमालय की गोद में बसे बाबा केदार का धाम धरती पर स्वर्ग से कम नहीं है।

केदारनाथ में यात्रियों के रुकने की व्यवस्था

केदारनाथ में यात्रियों की रूकने की व्यव्स्था रहती है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम के गेस्टहाउस के साथ-साथ वहाँ लाॅज इत्यादि आसानी से मिल जाते हैं। धर्मशालाओं मे भी रूकने की व्यवस्था हो जाती है।

मुख्य शहरों से दूरी

दिल्ली से केदारनाथ की दूरी - 452 किलोमीटर
देहरादून से केदारनाथ की दूरी - 254 Km
हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी - 239 Km
ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी - 216 Km
चण्डीगढ़ से केदारनाथ की दूरी - 443 Km

केदारनाथ धाम कैसे पहुँचे | How to reach Kedarnath Temple

पंच केदारों में प्रथम केदार बाबा केदारनाथ के धाम आप हवाई मार्ग, सड़क मार्ग व रेल मार्ग से यात्रा कर आसानी से पहुँच सकते हैं। तीनों ही माध्यम से आप किस तरह सुगमता से केदारनाथ पहुँच सकते हैं, हमने नीचे विस्तार से बताया है। तो आइए जानते हैं कैसे पहुँचे केदारनाथ धाम।

सड़क मार्ग से | By Road 

अगर आप केदारनाथ धाम की यात्रा सड़क मार्ग से बस या अपने वक्तिगत वाहन से से करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले बस से ऋषिकेश, हरिद्वार या देहरादून पहुँचना होगा। ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी लगभग 216 किमी है। यहाँ से आपको सोनप्रयाग के लिए सीधे बस सेवा उपलब्ध हो जाऐगी। सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक मैक्स व टैक्सी सेवा लेकर आप गौरीकुंड तक पहुँच सकते हैं जहाँ से फिर आपको लगभग 19 किमी पैदल मार्ग तय करके केदारनाथ धाम तक पहुँचना होता है।

रेल मार्ग से | By Train 

अगर आप केदारनाथ धाम की यात्रा रेल मार्ग से करना चाहते हैं तो आप जहाँ से आना चाहते हैं वहाँ से ऋषिकेश, हरिद्वार या देहरादून तक रेल से आ सकते हैं। जहाँ से आपको आगे का सफर बस से करना होगा।

हवाई मार्ग से | By Air 

अगर आप हवाई यात्रा करके केदारनाथ धाम पहुँचना चाहते हैं तो केदारनाथ धाम से निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट (देहरादून) है। जो कि केदारनाथ से लगभग 254 किमी की दूरी पर स्थित है। जौलीग्रांट हवाई अड्डा से आप रिक्शा या बस से भनियावाला या ड़ोईवाला पहुँच सकते हैं जहाँ से आपको ऋषिकेश जाने के लिए सीधे बस की सुविधा मिल जाएगी और ऋषिकेश से केदारनाथ धाम आप टैक्सी या बस की सुविधा लेकर आप आसानी से पहुँच हैं।

सीधे केदारनाथ तक हेलिकॉप्टर सेवा

आप केदारनाथ धाम तक पैदल न चलकर हेलिकॉप्टर की सेवा लेकर आसानी से पहुँच सकते हैं। इस वर्ष 4 अप्रैल 2022 से केदारनाथ हेली सेवा के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो चुकी है। देश और दुनिया से आने वाले तीर्थ श्रद्धालु heliservices.uk.gov.in वेबसाइट पर जाकर टिकट की बुकिंग कर सकते हैं।

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