Sidhbali Temple | सिद्धबली मंदिर, जहाँ हुआ था गोरखनाथ और बजरंगबली का युद्ध

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पवन तनय संकट हरण मंगल मूरत रूप।
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसौ सुर भूप ।।

उत्तराखण्ड जिसका उपनाम देवभूमि भी है। उत्तराखण्ड को इस नाम से पुकारे जाने का कारण है इसकी भूमि पर स्थित अनेकानेक सिद्ध स्थान एंव अनगिनत शक्तिपीठ। जिस भूमि का कण-कण व पग-पग ईश्वरीय अनुभूति से भर दे वह स्थान ही कहलाता है देवभूमि। आज ऐसे ही दिव्य स्थान या यूँ कहें एक सिद्ध स्थान “श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार” (Sidhbali Temple) के बारे में हम आपसे कुछ जानकारी साझा करेगें। यह तथ्य जो आप लोगों के बीच साझा किये जाऐंगे उनमें से कुछ अंश विद्वान एंव प्रबुद्ध लेखकों की खोज एंव अनुसंधान के प्रसाद रूप में लिये गए हैं।

परिचय | Introduction to Sidhbali Temple

बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणी के पाद में स्थित गिरीद्वार कोटद्वार जिसे गढ़वाल के द्वार के नाम से भी जाना जाता है उत्तराखण्ड के कुल 6 शहरी क्षेत्रों में से एक है। कोटद्वार शहर की बात करें तो यह शहर समुद्रतल से 454 मी. की ऊँचाई पर खो नदी के तट पर दायीं ओर बसा एक खूबसूरत नगर है और इसी कोटद्वार शहर से 2 किमी की दूरी पर बद्रीनाथ मार्ग; राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 534 के दाईं ओर खो नदी के तट पर हनुमान जी को समर्पित एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है सिद्ध स्थान सिद्धबली धाम (Sidhbali Temple)। जो सिर्फ उत्तराखण्ड ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी प्रसिद्ध है। विश्वप्रसिद्ध एंव ऐतिहासिक स्थल कण्वाश्रम भी यहाँ से मात्र 9 किमी की दूरी पर है।

श्री सिद्धबली धाम की पौराणिक महिमा | Mythological Glory of Sidhbali Temple

इस पृथ्वी पर देवों के देव महादेव अर्थात शिव जी कण – कण में बिराजमान हैं। परन्तु उनका निवास स्थान हिमालय को माना गया है एवं इनकी पहाड़ियों को शिव नाम अर्थात शिवालिक श्रेणी नाम से ही जाना जाता है। क्योंकि ये श्रेणियां अपने आप में साक्षात शिवजी हैं शिवजी अर्थात शिखर, वन एवं जीव जिनकी सामजस्यता ही शिव जी नाम को परिपूर्ण करती हैं अर्थात जहां शिखर हों और उनमें वन हों तथा उनमें जीव हों तो शिवजी पर्वत श्रेणियों के रूप में साक्षात विराजमान होते है। पृथ्वी पर ऐसा स्थान हिमालय का केदारखण्ड (उत्तराखण्ड) ही है। जो देवस्थान ऋषि, मुनियों की तपस्थली के कारण सदैव ही पूज्यनीय है।

स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि जावालि, गालव, मार्कण्डेय, महामना च्यवन, तेजस्वी भृगु आदि महार्षियों की तपसिद्धि का क्षेत्र, यही केदारखण्ड (गढ़वाल हिमालय) ही रहा है। इस प्रकार इस स्थान का कण – कण पवित्र एवं पुण्य है स्कन्द पुराण के 47 वें अध्याय के अनुसार कण्वाश्रम से लेकर नन्दगिरि तक जितना क्षेत्र है वह परम पवित्र एवं भुक्ति मुक्तिदायक है। लोक में विख्यात कण्व नामक महातेजस्वी महर्षि ने उस आश्रम में भगवान रमापति विष्णु को नमस्कार करके इस क्षेत्र में निवास करने के लिए प्रार्थना की जो प्रार्थना स्वीकृत हुई। महर्षि कण्व का आश्रम मालिनी नदी के तट पर कोटद्वार क्षेत्र तक फैला हुआ था। इस कोटद्वार कस्बे के समीप चारों तरफ से द्वारपाल की तरह घिरी पर्वत श्रेणियों में पवित्र धाम श्री सिद्धबली (Sidhbali Temple) मन्दिर स्थित है। जिसके चरणों में खोह नदी बहती है।

गंगाद्वार (हरिद्वार) के उत्तरपूर्व यानि इशान कोण के कौमुद तीर्थ के किनारे कौमुदी नाम की प्रसिद्ध दरिद्रता हरने वाली नदी निकलती है। जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र व वर्तमान में हरिद्वार एवं कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रचलित हुए, उसी प्रकार कौमुदी वर्तमान में खोह नदी नाम से जानी जाने लगी। जो कौमुदी का अपभ्रंश है। जो डांडामण्डी क्षेत्र एवं हेमवन्ती (हूयूल) नदी के दक्षिण से निकली है। इस पौराणिक नदी के तट पर श्री सिद्धबली धाम पौराणिक सिद्धपीठ के रूप में विराजमान है। इस पवित्र धाम में साक्षात शिव द्वारा धारण, जिस पर शिवजी ने स्वयं निवास किया है। अपने आप में पूज्यनीय है।

Sidhbali Temple
सिद्धों का डण्डा से सिद्धबली मन्दिर का खूबसूरत नजारा

श्री सिद्धबली धाम की महत्ता एवं पौराणिकता के विषय में कई जनश्रुतियां एवं किंवदन्तिया प्रचलित है। कहा जाता है। स्कन्द पुराण में वर्णित जो कौमुद तीर्थ है उसके स्पष्ट लक्षण एवं दिशायें इस स्थान को कौमुद तीर्थ होने का गौरव देते है। स्कन्द पुराण के अध्याय 116 (श्लोक 6) में कौमुद तीर्थ के चिन्ह के बारे में बताया गया हैं कि महारात्रि में कुमुद (बबूल) के पुष्प का गन्थ लक्षित होती है। प्रमाण के लिए आज भी इस स्थान के चारों ओर बबूल के वृक्ष विद्यमान है कुमुद तीर्थ के विषय में कहा गया है कि पूर्वकाल इस तीर्थ में कौमुद (कार्तिक) की पूर्णिमा को चन्द्रमा ने भगवान शंकर को तपकर प्रसन्न किया था। इसलिए इस स्थान का नाम कौमुद पड़ा। शायद कोटद्वार कस्बे को तीर्थ कौमुद द्वार होने के कारण ही कोटद्वार नाम पड़ा। क्योंकि प्रचलन के रूप में स्थानीय लोग इस कौमुद द्वार को संक्षिप्त रूप में कौद्वार कहने लगे, जिसे अंग्रेजो के शासन काल में अंग्रेजो के सही उच्चारण न कर पाने के कारण उनके द्वारा कौड्वार कहा जाने लगा। जिससे उन्होंने सरकारी अभिलेखों में कोड्वार ही दर्ज किया और इस तरह इसका अपभ्रंश रूप कोटद्वार नाम प्रसिद्ध हुआ। परन्तु वर्तमान में इस स्थान को सिद्धबाबा के नाम से ही पूजा जाता है। कहते है कि सिद्धबाबा ने इस स्थान पर कई वर्ष तक तप किया। श्री सिद्धबाबा (Sidhbali Temple) को लोक मान्यता के अनुसार साक्षात गोरखनाथ माना जाता हैं जो कि कलियुग में शिव के अवतार माने जाते है।

गुरु गोरखनाथ भी बजरंगबली की तरह एक यति है। जो अजर और अमर हैं। इस स्थान को गुरु गोरखनाथ के सिद्धि प्राप्त स्थान होने के कारण सिद्ध स्थान माना गया है एवं गोरखनाथ जी को इसीलिए सिद्धबाबा भी कहा गया है। नाथ सम्प्रदाय एवं गोरख पुराण के अनुसार नाथ सम्प्रदाय के गुरु एवं गोरखनाथ जी के गुरु मछेन्द्र नाथ जी पवन पुत्र बजरंगबली के आज्ञानुसार त्रियाराज्य में (जिसे चीन के समीप माना जाता है) जिसकी शासक रानी मैनाकनी थी के साथ ग्रहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। परन्तु उनके परम तेजस्वी शिष्य गोरखनाथ जी को जब यह ज्ञात होता है तो उन्हें बड़ा दुःख एवं क्षोभ हुआ तो वह प्रण करते है कि उन्हें किसी भी प्रकार उस राज्य से मुक्त किया जाय।

जब वे अपने गुरु को मुक्त करने हेतु त्रियाराज्य की ओर प्रस्थान करते हैं तो पवन पुत्र बजरंग बली अपना रूप बदलकर इस स्थान पर उनका मार्ग रोकते है। तब दोनों यतियों के मध्य भंयकर युद्ध होता है। पवन पुत्र को बड़ा आश्चर्य होता है, कि वे एक साधारण साधु को परास्त नहीं कर पा रहे है। उन्हे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि यह दिव्य पुरुष भी मेरी तरह ही कोई यति है। तब हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आते हैं और गुरु गोरखनाथ जी से कहते हैं कि मैं तुम्हारे तप बल से अति प्रसन्न हुआ। जिस कारण तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो, तब श्री गुरु गोरखनाथ जी कहते है कि तुम्हे मेरे इस स्थान में प्रहरी की तरह रहना होगा एवं मेरे भक्तों का कल्याण करना होगा।

विश्वास है कि आज भी यहां वचनबद्ध होकर बजरंग बली जी साक्षात उपस्थित रहते है। तब से ही इस स्थान पर बजरंग बली की पूजा की विशेष महत्ता है और इन्ही दो यतियों (श्री बजरंग बली जी एवं गुरु गोरखनाथ जी) जो सिद्ध एवं बली है, के कारण सिद्धबली कहा गया है एवं श्री सिद्धबाबा को यहां पर सभी सिद्धबली बाबा के नाम से पुकारते है। यहाँ पर श्री गुरु गोरखनाथ जी ने अपना स्थायी स्थान बनाकर अपने शिष्य पवन नाथ को नियुक्त किया। इस स्थान पर सिखों के गुरु संत गुरुनानक जी ने भी कुछ दिन विश्राम किया, ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान को सभी धर्मावलम्बी समान रूप से पूजते एवं मानते है। इस स्थान का जीर्णोद्वार एक अंग्रेज अधिकारी के सहयोग से हुआ।

कहते है इस स्थान के समीप एक अंग्रेज अधिकारी (जो खाम सुपरिटेडेंट हुआ करता था) ने एक बंगला बनवाया जो आज भी इस स्थान पर मौजूद है। जब घोड़े पर चढ़कर इस बंगले पर रहने के लिए आया तो घोड़ा आगे नहीं बढ़ा तब उसने घोड़े पर चाबुक मारा तो घोड़े ने अधिकारी को जमीन पर पटक दिया तो वह बेहोश हो गया। उस अधिकारी को बेहोशी में सिद्धबाबा ने दर्शन देकर कहा कि इस स्थान पर मेरे द्वारा पूजे जाने वाली पिण्डियाँ जो खुले स्थान पर है उनके लिए स्थान बनाओ तभी तुम इस बंगले मे रह सकते हो, तभी उस अधिकारी द्वारा जन सहयोग से इस स्थान का जीर्णोद्धार किया गया। आज धीरे – धीरे भक्तों एवं श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्य रूप धारण कर चुका है।

श्री सिद्धबली धाम एंव गुरू गोरखनाथ के चमत्कार | Sidhbali Temple and Miracles of Guru Gorakhnath

परमपावन धाम श्री सिद्धबली धाम तीन तरफ से बनों से ढंका हुआ बड़ा रमणीय व पूज्य स्थान है। यह स्थान श्री सिद्धबाबा (गुरु गोरखनाथ एवं उनके शिष्यों) का तपस्थान रहा है। यहाँ पर बाबा सीताराम जी, बाबा गोपाल दास जी, बाबा नारायण दास जी, महंत सेवादास जी जैसे अनेक योगियों एवं साधुओं का साधना स्थल रहा है। यहाँ पर ही परमपूज्य फलाहारी बाबाजी ने जीवनपर्यन्त फलाहार लेकर ही कई वर्ष तक साधना की। कहा जाता है कि एक प्रसिद्ध मुस्लिम फकीर जो एक वली (इस्लाम के अनुसार जो शख्स इबादत करते – करते खुदा को पा लेता है उसे वली कहते है ) थे ने भी कई वर्षों तक इस स्थान पर अपना निवास बनाया। यहाँ पर भक्तों द्वारा विश्वास किया जाता है कि जो भी पवित्रभावना से कोई मनोती श्री सिद्धबली बाबा से मांगता है, अवश्य पूर्ण होती है। मनोती पूर्ण होने पर भक्तजन भण्डारा आदि करते है। श्री सिद्धबली बाबा को बरेली, बुलन्दशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बिजनौर, हरिद्वार आदि तक की भूमि का क्षेत्रपाल देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

गोरखपुराण के उन्तालिसवें (36 वें) भाग में उल्लेख है कि श्री गुरु गोरखनाथ जी (श्री सिद्ध बाबा जी) अपने उत्तराखण्ड प्रवास के दौरान उन्होंने डुगराल (दुगड्डा) गाँव के निकट अपने इस तपस्थान (वर्तमान में श्री सिद्धबली धाम जहाँ पर सिद्धबाबा के शिष्य पवन नाथ जी स्थायी रूप से रहते थे) में कुछ दिन विश्राम करने हेतु रूके तो एक दिन श्री सिद्धबाबा ने अपने शिष्य पवन नाथ को समीपवर्ती आबादी (तत्कालीन समय में जिला बिजनौर में ही आबादी थी) में अनाज व दूध लेने भेजा। जब पवन नाथ गाँव में पहुंचे तब वहाँ के दुर्जन मसखरों ने उसे एक निर्धन ब्राह्मण के घर भेज दिया और कहा कि उस ब्राह्मण के यहाँ बहुत सी गाय है। वह नित्य ही साधु – सन्तों को दूध – दही से सेवा करता है, वही से आपको मनचाहा दूध व अनाज मिल जायेगा। पवन नाथ उन लोगों की बातों को सत्य जानकर निर्धन ब्राह्मण के घर दूध मांगने हेतु जा पहुंचा। वह ब्राह्मण इतना गरीब था कि उसके घर में केवल एक ही फटी पुरानी धोती थी, जब उसकी पत्नी कुयें से पानी भरने जाती तो वह उस धोती को पहनकर जाती और ब्राह्मण एक फटा हुआ कपड़ा लपेटकर घर में बैठा रहता।

जब ब्राह्मण भिक्षा मांगने जाता तब वह उस धोती को बांध जाता और उसकी पत्नी फटा कपड़ा लपेट कर घर में बैठी रहती। जब गरीब ब्राह्मण के घर के दरवाजे पर पहुंचकर पवन नाथ ने अलख – अलख शब्द का उच्चारण किया तो ब्राह्मण व उसकी पत्नी अपनी गरीबी को देख रो पड़े। पवन नाथ ने उन दोनों के आँखो से जलधारा बहते देख उनकी हीन व गरीबी दशा का भली प्रकार अंदाजा कर लिया और भली प्रकार समझ लिया कि गाँव के दुर्जनों ने इन गरीबों को लज्जित करने के लिये मुझे उनके दरवाजे पर भेज दिया। पवननाथ ने तुरन्त ही उस ब्राह्मण का दरवाजा छोड़ दिया और दूसरे घर से दूध आदि मांग कर सीधा गुरु गोरखनाथ जी के पास जा पहुंचा। गोरखनाथ के पास पहुंचकर उसने गाँव के दुर्जनों की सारी करतूत का व्यौरा बयान कर दिया और कहा कि उस गरीब ब्राह्मण को लज्जित कराने के कारण मेरे साथ भी उपहास किया।

Sidhbali Temple

गोरखनाथ जी ने जब अपने शिष्य से उस ब्राह्मण की गरीबी का हाल सुना तो उनकी दया का सागर उमड़ पड़ा, उन्होंने उसी समय अपनी झोली से अभिमंत्रित भस्मी को निकालकर पवन नाथ को देकर कहा, “ ये भस्मी तुम गरीब ब्राह्मण के घर में डाल आओ भगवान की इच्छा से रात ही रात में अपने गाँव के निवासियों में सबसे धनी व्यक्ति बन जायेगा, तब मैं कल स्वयं जाकर उसके घर जाकर दूध पीऊंगा। गोरखनाथ की आज्ञा मानकर पवन नाथ उस भस्मी को उस निर्धन ब्राह्मण के घर डाल आया, भस्मी ने तुरन्त ही जादू जैसा करिश्मा दिखाया। उस ब्राह्मण का घर उसी समय दौलत एवं गायों से भर गया। इस परिवर्तन को देख गाँव के सभी नर – नारियों को भारी कौतुहल हुआ और जिन दुर्जनों ने ब्राह्मण का उपहास किया, उनकी लज्जा के कारण गर्दन झुकी हुई थी। ब्राह्मण व ब्राह्मणी भी इस आश्चर्यजनक कायापलट को देखकर बुरी तरह भयभीत होकर बेहोश हो गये, उनको अपने तनमन की भी सुध नही रही। तन की सुध लेने वाला तब था ही कौन? योगी राज गोरखनाथ से कोई भेद छिपा न था वह तुरन्त ही अपने सैकड़ो शिष्यों के साथ ब्राह्मण के घर जा पहुंचा और उन्होंने उन बेहोश ब्राह्मण – ब्राह्मणी के सिर पर कमण्डल से जल छिड़ककर उन्हें होश में किया और बोले, “तुम्हारे जो पूर्वजन्म के पाप थे अब समाप्त हो गये, अब आपके भाग्य उदय हो गये है, अब आप इस धन को भले कार्य में लगाकर अगला जन्म सुधारो।”

तत्पश्चात ब्राह्मण व ब्राह्मणी ने साधु – सन्तों को भोजन, हलवा, पूरी स्वयं बनाकर खिलाया। तब से ही यह परम्परा है कि किसान लोग कोई भी फसल खलिहानों से उठाने से पहले दूध, गुड़, अनाज सर्वप्रथम श्री सिद्धबली बाबा को चढ़ाते है। कहते है कि इस क्षेत्र के लोगों की श्रद्धा एवं श्री सिद्धबली बाबा की कृपा से इस क्षेत्र में फसल हर वर्ष अच्छी होती है। यहाँ पर रविवार, मंगलवार एवं शनिवार को भण्डारे करने की परम्परा है। लेकिन रविवार को भण्डारा करने की विशेष महत्व है। कहते है कि श्री सिद्धबली बाबा सप्ताह में छः दिन समाधि में रहते थे एवं केवल रविवार को अपने शिष्यों को दर्शन देते थे। इसलिये कहा जाता है कि आज भी श्री सिद्धबाबा रविवार को दर्शन देने आते है। श्री सिद्धबली बाबा को आटा, गुड़, घी, भेली से बना रोट एवं नारियल का प्रसाद चढ़ता है एवं हनुमान जी को सवा हाथ का लंगोट व चोला भी चढ़ता है। प्रातः ब्रह्ममुहर्त में पुजारियों द्वारा पिण्डियों (जिनकी पूजा स्वयं सिद्धबाबा जी शिव शक्ति के रूप में करते थे) की अभिषेक पूजा की जाती है, तत्पश्चात सर्वप्रथम साधुओं द्वारा बनाये गये रोट (गुड़ , आटा व घी से बनी रोटी) का भोग चढता है। तत्पश्चात ही अन्य भोग चढते है। दिसम्बर माह में पौष संक्रान्ति को श्री सिद्धबाबा का तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है, जिसमें लगातार तीन दिन तक बड़े भण्डारे आयोजित होते हैं एवं सवा मन का रोट प्रसाद स्वरूप बनाया जाता है।

(संदर्भ – श्री सिद्धबली धाम महिमा)

सिद्धबली धाम की मान्यता | Recognition of Sidhbali Temple

खो नदी के किनारे बसा यह खूबसूरत बजरंगबली का धाम अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों द्वारा सच्चे मन से माँगी गई मुराद यहाँ जरूर पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा व खुशी से बाबा के धाम में भण्ड़ारा करवाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि अगर आपको यहाँ भण्डारा करवाना है तो आपको 2027 तक का इंतजार करना होगा। क्योंकि तब तक भण्ड़ारे की तिथियाँ पहले ही बुक हो चुकी हैं। यूँ तो हर रोज ही बाबा के सिद्ध पीठ में भण्ड़ारा चलता रहता है पर विशेषकर मंगलवार, गुरूवार व शनिवार को भण्ड़ारा किया जाता है।
अपने रहस्यों से परिपूर्ण यह मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

“चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा।”

सिद्धों का ड़ाण्ड़ा व सिद्धबली मंदिर की ऐतिहासिक स्थिति | Historical condition of Siddha’s Danda and Sidhabali temple

This place denots the old and ancient temple of Sidhabali temple. This place is known as Siddhon ka danda.
प्राचीन सिद्धों का डाण्डा

कहते हैं कि बाबा बजरंगबली का प्राचीन मंदिर, वर्तमान मंदिर क्षेत्र के ठीक पीछे की पहाड़ी जिसे ग्रामीण व बाबा के भक्त सिद्धों का ड़ाण्ड़ा, झण्ड़ी धार आदि नामों से पुकारते हैं पर स्थित है। प्रत्येक वर्ष सिद्धबली वार्षिकोत्सव के समय मुख्य पुजारी व महंत बाबा की पूजा करने हेतु उस सिद्धों के ड़ाण्ड़ा पर चढाई कर पहुँचते हैं एंव पूजा अर्चना करते हैं। इस स्थान को कुछ विद्वान शकुन्तला के जन्म स्थली के रूप में भी देखते हैं।
कुवँर सिंह नेगी ‘कर्मठ’ जी की माने तो वह कहते हैं कि जहाँ पर सिद्ध पीठ है वहीं पर शकुंतला पैदा हुई थी। जो कण्वाश्रम में पली व जिसका विवाह दुष्यन्त से हुआ। ऐसा माना जाता है कि जब सन 1804 ई• में कोटद्वार में रेल आई तो नजीबाबाद से कुछ ख्याति प्राप्त व्यापारी भी आए और उन्होंने मौजूदा सिद्धबली के पास अपनी मंडी बनाई। इसे कोटद्वार मंडी के नाम से पुकारा जाता था। व्यापारी लोग शकुंतला के पैदाइशी स्थान पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर में नहीं जा सके और उन्होंने वहाँ से कुछ अवशेष लाकर मौजूदा सिद्धबली मंदिर में लाकर रख दिये।

सिद्धबली के वर्तमान अनुष्ठान और महोत्सव | Current Rituals and Festivals of Sidhabali Temple

यह सिद्धबाबी बाबा का ही चमत्कार है जो दिनोंदिन “सिद्धबली धाम कोटद्वार” की कायाकल्प हो रही है। यह भक्तों की श्रद्धा का ही परिणाम है कि वर्ष भर मंदिर की साज-सज्जा व सौंदर्यीकरण काम चलता ही रहता है। प्रत्येक वर्ष दिसंबर माह में श्री सिद्धबली बाबा वार्षिक अनुष्ठान महोत्सव का आयोजन किया जाता है। यह अनुष्ठान मंदिर के महंत, मेला समिति के अध्यक्ष और वेद पाठी आचार्यों के संरक्षण में वृहद्  स्तर पर संपन्न होता है।
मध्य दिसंबर के आसपास आयोजित होने वाले इस त्रिदिवसीय उत्सव में हरिद्वार क्षेत्र के महामंडलेश्वर तथा अनेक ट्रस्ट के स्वामी भी पधारते हैं। दस हगार से अधिक मेलार्थियों के मनोरंजनार्थ अनेक यथा, जागर, गीत, संगीत सम्राट भी भाग लेते हैं। अब तो व्यापक प्रचार-प्रसार और मान्यता के कारण यह भी कहा जाने लगा है कि इसे पांचवा धाम माना जाए।

भौगोलिक स्थिति | Geographical situation of Sidhbali Temple

सिद्धबली मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के दक्षिणी छोर पर खो नदी के तट पर स्थित है। समुद्रतल से 454 मी. की ऊँचाई पर एक टीले नुमा पहाड़ी पर स्थित हनुमानजी का यह धाम कार्बेट नेशनल पार्क से सटा हुआ है। सिद्धबली मंदिर से उत्तर में नीलकंठ महादेव, महाबगढ़ व चरक ऋषि की तपस्थली चरेक की सुंदर पहाड़ी व आदि कई दृश्य दिखाई देते हैं। लैंसड़ाउन छावनी यहाँ से मात्र 37 किमी की दूरी पर स्थित है। वीर भरत की जन्मस्थली जिसके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा वह ऐतिहासिक स्थल कण्वाश्रम मंदिर से 12 किमी की दूरी पर स्थित है।
इसके पूर्व में ढिकाला और राम गंगाराम आदि कई दृश्य दिखाई देते हैं। पश्चिम में कोटद्वार का सारा भाबर क्षेत्र दिखाई देता है। दक्षिण में बिजनौर, धामपुर आधी दूर-दूर के स्थान भी दिखाई देते हैं।

मुख्य शहरों से सिद्धबली मंदिर की दूरी | Distance of Sidhbali Temple from main cities

नई दिल्ली से - 214 किमी
देहरादून से - 119 किमी
पौड़ी से - 106 किमी
हरिद्वार से - 68 किमी
ऋषिकेश से - 89 किमी
हल्द्वानी से - 169 किमी

सिद्धबली मंदिर कैसे पहुँचे? | How to Reach Sidhbali Temple Kotdwara, Uttarakhand

उत्तराखण्ड के दक्षिणी छोर पर पौड़ी जिले में स्थित कोटद्वार शहर में बजरंगबली के धाम ‘सिद्धबली’ मंदिर आप बस, ट्रेन, फ्लाइट व अपने निजी वाहन से पहुँच सकते हैं। विभिन्न माध्यमों से आप मंदिर (Sidhbali Temple) कैसे पहुँच सकते हैं यह नीचे विस्तार से बताया जा रहा है

हवाई जहाज से –

अगर आप हवाई यात्रा करके सिद्धबली धाम पहुँचना चाहते हैं तो कोटद्वार से निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट (देहरादून) है। जो कोटद्वार से लगभग 108 किमी की दूरी पर स्थित है। जौलीग्रांट हवाई अड्डा से आप रिक्शा या बस से भनियावाला या ड़ोईवाला पहुँच सकते हैं जहाँ से आपको कोटद्वार जाने के लिए सीधे बस की सुविधा मिल जाएगी और कोटद्वार से सिद्धबली मंदिर (Sidhbali Temple) टैक्सी वगैरह की सुविधा लेकर आप आसानी से पहुँच हैं।

ट्रेन?

यदि आप कोटद्वार में स्थित सिद्धबली धाम की यात्रा रेलगाड़ी के माध्यम से करना चाहते हैं तो आपको दिल्ली व नजीबाबाद से सीधी रेल कोटद्वार के लिए मिल जाऐगी। कोटद्वार रेलवे स्टेशन से आप रिक्शा पकड़कर सिद्धबली मंदिर (Sidhbali Temple) जो कि स्टेशन से 3.4 किमी की दूरी पर स्थित है आसानी से पहुँच सकते हैं।

बस से?

बस से सफर करने वाले यात्रियों को दिल्ली, देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, नजीबाबाद आदि स्थानों से सीधा कोटद्वार के लिए बस मिल जाएगी और कोटद्वार से टैक्सी वगैरह की सुविधा लेकर सिद्धबली मंदिर (Sidhbali Temple) आसानी से पहुँच सकते हैं।

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10 thoughts on “Sidhbali Temple | सिद्धबली मंदिर, जहाँ हुआ था गोरखनाथ और बजरंगबली का युद्ध”

  1. Got to know many things about Shri Sidhbali Dhaam, Kotdwar today… Thanx for sharing these things with everyone 👍👍👍

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