विश्व गौरैया दिवस | World Sparrow Day
आज भारत सहित संपूर्ण विश्व में गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाया जा रहा है। वर्ष 2020 में गौरैया दिवस मनाने की शुरुआत थब हुई जब इसकी संख्या में भारी कमी देखने मिली। इसी कारण लोगों में गौरैया के संरक्षण व इसके प्राकृतिक वातावरण को बनाए रखने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।
किसने की गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाने की शुरूआत?
प्रत्येक वर्ष 2010 से 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाने की पहल की शुरुआत Nature Forever Society of India व Echoes Action Foundation of France ने की। वर्ष 2008 में टाइम मैगजीन द्वारा “Heros Of Environment” के पुरस्कार से सम्मानित महाराष्ट्र के नासिक में रहने वाले पर्यावरणविद मोहम्मद दिलावर ने इस सोसाइटी शुरुआत गौरैया पक्षियों की सहायता हेतु की थी। आज के दिन गौरैया के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों को “गौरैया पुरस्कार” से सम्मानित भी किया जाता है। पर्यावरण के संरक्षण और इस कार्य में मदद की सराहना करने हेतु NFS ने 20 मार्च 2011 में गुजरात के अहमदाबाद शहर में गौरैया पुरस्कार की शुरुआत की थी।
इंसानी बस्तियों के आसपास रहने वाली और अपनी मधुर चहचहाहट से वातावरण को खुशनुमा बना देने वाली नन्हीं गौरैया से हमारा घनिष्ठ संबंध है। घरों में रोशनदानों, छज्जों, छप्परों व मानवीय बस्तियों में अपना बसेरा बनाने वाली प्यारी गौरैया के अस्तित्व में खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
गौरैया जिसे उत्तराखण्ड गढ़वाल में घिंड़ुड़ी व कुमाऊँ में घिनौड़ कहा जाता है जो दाने के साथ इंसानी प्यार की भी भूखी होती है। उसकी मीठी चहचहाहट हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। घर-गाँवों में माँ की ड़ाँट के साथ इसी नन्हीं सी घिंड़ुड़ी की आवाज अक्सर अलार्म का काम करती है। अक्सर यह घिंड़ुड़ी सुबह होते ही अपनी चहचहाहट से पूरे घर-आंगन को खुशनुमा कर देती है। सुबह जब माँ दिन के खाने की तैयारी में चावल साफ करती है तो उससे निकले चावल के छोटे-छोटे टुकड़ों को खाने के लिए आसपास व ऊपर नीचे उड़ना शुरू कर देती है व जोर-जोर से शोर मचाकर हक से हम इंसानों से अपना हिस्सा माँगती है। मानो वो कह रही हो कि मैं भी तुम्हारे ही परिवार का एक हिस्सा हूँ।
हमारे दैनिक जीवन में घुल मिल गई यह नन्हीं सी घिंड़ुड़ी हम सभी को बहुत प्रिय है। अपने ताने-बाने का संतुलन बनाने के लिए प्रकृति की सभी रचनाएं प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर हैं और उनमें हमारे साथ-साथ नन्हीं गौरैया भी शामिल है।
गौरैया के अस्तित्व में मंडराता खतरा
• वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार द्वारा राज्य-पक्षी घोषित की गई गौरैया की संख्या भारत में लगातार घटती जा रही है। कुछ वर्षों पहले तक घरों के आसपास आसानी से नजर आ जाने वाली गौरैया अब कम ही नजर आती है। दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी ये पक्षी नहीं मिलता।
• हमारी नन्हीं घिंड़ुड़ी की संख्या चिंताजनक रूप से शहरों व मैदानी इलाकों में बहुत घटी है। आधुनिक स्थापत्य एंव शहरीकरण की चकाचौंध ने हमारी नन्हीं जान का बसेरा छीन लिया है। उसे पुराने घरों की तरह रहने के लिए उचित जगह नहीं मिल पा रही है। वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो आज की तारीख में हमारे घर तो बहुत बड़े-बड़े हो गए हैं पर दिल इतने छोटे हो गए हैं कि उसमें नन्हीं सी गौरैया तक के लिए जगह नहीं बची। जिसके कारण वो आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।
• वो आज बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से हम तथाकथित अमीर हो चुके लोगों की तरफ देख रही है कि कहीं तो उसे स्थान मिल सके जहाँ वो अपना छोटा सा घोंसला बना सके व हमारे बीच रहकर प्रकृति में समन्वय बनाने में अपनी भूमिका निभा सके।
• आधुनिक बनावट वाले कंक्रीट के मकानों में गौरैया को अब घोंसले बनाने की जगह ही नहीं मिलती। जहाँ मिलती है, वहाँ हम उसे घोंसला बनाने नहीं देते। उसके द्वारा तिनका-तिनका करके बनाए गया घोसला हमें कूड़े का कारण नजर आने लगा है, गंदगी नजर आने लगी है। अपने घर में थोड़ी-सी गंदगी फैलने के डर से हम उसका इतनी मेहनत से तिनका-तिनका जुटाकर बनाया गया घर उजाड़ देते हैं।
• यही कारण है कि आज गौरैया घरों में नजर आना बंद हो गई है। गौरैया की संख्या में कमी के दूसरे कारणों की ओर ध्यान दे तो अत्यधिक बढते मोबाइल फोन और उनके टाॅवर हैं।
• अत्यधिक रेडियेशन गौरैया के हैबिटेट के लिए हानिकारक है। करीब एक दशक पूर्व तक पेड़-पौधों व घर आंगन में तरह-तरह के पक्षियों को चहकते आसानी से देखा जाता था, लेकिन अब ये मात्र किताबों के पन्नों तक ही सिमटकर रह गए हैं। कोई ऐसा नहीं होगा जिसने बचपन में चिड़ियों के घोंसलों को न निहारा हो व इनको देखने में उत्सुकता न दिखाई हो और इन्हें पकड़ने की कोशिश न की हो। बदलते परिवेश में सब कुछ बदल रहा है। अब इन पक्षियों का घर आंगन में सुबह-सुबह चहचहाना अब कम हो गया है।
• घरों में पक्षियों का चहचहाना, भोजन की तलाश में एक घर से दूसरे घर में फुदकते रहना, छत पर सुखाए अनाज से अपना पेट भरना व आंगन में इन पक्षियों की मधुर किलकारियों की गूंज रहती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे ये पक्षी दिखाई देने बंद हो रहे हैं।
• गौरैयों की आबादी घटने का एक प्रमुख कारण मोबाइल टावरों का जाल बिछना है। इनसे निकलने वाले रेडिएशन इनके के लिए बहुत घातक हैं। आधुनिक विज्ञान के दौर में मोबाइल व इंटरनेट का प्रचलन काफी बढ़ गया है जिसके चलते मोबाईल कंपनियों के टावर हर क्षेत्र में लगाए जा रहे हैं।
• गौरतलब है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगे इन पक्षियों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। यहाँ यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बढ़ते आधुनिक मोबाइल के दौर में व टावरों से निकलने वाली तरंगे इन पक्षियों को लुप्त करने का काम कर रही हैं।
• इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इसके अलावा उनके दाना-पानी की भी समस्या है। गौरैया मुख्यतः काकून, बाजरा, धान, पके चावल के दाने और कीड़े खाती है। लेकिन आधुनिकता उनसे प्राकृतिक भोजन के ये स्रोत भी छीन रही है।
• प्रदूषण बढ़ रहा है! खाने के तरीके बदल रहे हैं! अब हम सब पैकेट में खरीद के लाते हैं। छत पर अनाज नहीं सुखाते जिनसे इनके दाने की समस्या उत्पन्न हो गई है।
Follou Us
धन्यवाद
धन्यवाद
Nice 👍🏻👍🏻👍🏻
Thanks
बहुत ही जानकारी पूर्ण लेख है।
धन्यवाद मित्र।