फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान | Valley of Flowers National Park

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फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान
Valley of Flowers National Park

स्थापना - 1982
क्षेत्रफल - 87.50 वर्ग किमी
अवस्थिति - चमोली

वर्ष 1982 में चमोली जनपद में स्थापित, 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल इस उद्यान क्षेत्र में, कामेट पर्वत शिखर के पर्वतारोही एवं वनस्पति शास्त्री फ्रैंक सिडनी स्माइथ ने सन् 1931 में सर्वप्रथम फूलों की घाटी में प्रवेश किया तथा सन् 1938 में ने ‘वैली आफ फ्लावर्स’ (Valley of Flowers) नामक पुस्तक लिखकर विश्व का ध्यान इस अद्भुत पुष्प – संपदा की ओर आकर्षित किया था। स्थानीय निवासी इस स्थान को भ्यूँडार घाटी के नाम से जानते थे। पौराणिक प्रसंग में इस स्थान का सम्बन्ध रामायण में वर्णित ‘संजीवन’ पर्वत से जोड़ा गया है। पुष्पावती नदी के समीपवर्ती इस उद्यान में जुलाई – अगस्त के महीनों में लगभग 300 प्रजातियों के पुष्प खिलते हैं। यहाँ हिमालयन काला भालू , कस्तूरी मृग, स्नो लेपर्ड, गुलदार, भराल तथा रंग – बिरंगी अनेक प्रजाति की तितलियाँ पाई जाती हैं। विश्वभर से वनस्पति विज्ञानी, शोध छात्र, प्रकृति – प्रेमी, पर्यावरणविद् तथा सैलानी यहाँ आते रहते हैं। उद्यान के निकट ही वन विश्रामगृह घाँघरिया, पर्यटकों को आवास सुविधा प्रदान करता है। मध्य जुलाई से मध्य अगस्त तक पर्यटन हेतु उपयुक्त समय है। फूलों की घाटी को अंतर्राष्ट्रीय निधि (International Treasure) की मान्यता प्राप्त है। 14 जुलाई सन् 2005 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने फूलों की घाटी को विश्व धरोहर (World Heritage) घोषित किया है। गढ़वाल हिमालय की इस धरोहर का अस्तित्व फूलों के साथ – साथ उगने वाले पुष्पयुक्त खरपतवार ‘पोलीगोमन’ के कारण संकट में है क्योंकि यह वनस्पति अपने आस – पास से किसी भी फूल के पौधे को पनपने नहीं देती। नन्दादेवी राष्ट्रीय उद्यान, प्रतिवर्ष जून सितम्बर तक अभियान चलाकर इस वनस्पति का उन्मूलन करता है।

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान चमोली जिला मुख्यालय से लगभग 150 किमी दूरी पर समुद्र तल से 3600 मी. की ऊँचाई पर नर और गंध मादन पर्वतों के बीच स्थित है। फूलों की घाटी को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है। यहाँ पुष्पावती नदी बहती है जो कि कामेत पर्वत (पुष्पतोया ताल) से निकली है। यहाँ का मुख्य आकर्षण हजारों किस्म के पुष्प और दुर्लभ जन्तु हैं। इस उद्यान का मुख्यालय जोशीमठ है।

यहाँ अनेक दर्शनीय पुष्प-पदम् पुष्कर, पुष्प प्रिमुला, नीली पॉपी, विष कंडार, ब्रह्मकमल, वत्सनाम, शालमपंजा, फेणकमल, हिमकमल तथा अनेक औषधीय पुष्प यथा-रुद्रदंती, शिवधतूरा, कूट, सोम, रतनजोत, ममीरी, निर्विषी और जटामासी मिलते हैं। दुनिया में अन्यत्र एक स्थान पर जैव विविधता की ऐसी मिसाल कम ही मिलती है।

‘फूलों की घाटी’ को ढूँढ़ने का श्रेय पर्वतारोही फ्रैंक स्माइथ को जाता है। सन् 1931 में कामेट पर्वत पर चढ़ने के बाद स्माइथ गंदमादन पर्वत श्रृंखला से होकर बद्रीनाथ की ओर जा रहे थे तो उन्हें यहाँ फूलों की घाटी के दर्शन हुए। उन्होंने यहाँ व्यापक सर्वेक्षण कर पुष्पों व वनस्पति प्रजातियों की करीब ढाई हजार किस्में ढूँढ़ निकालीं, जिनमें से करीब 250 किस्म के बीज वे अपने साथ विदेश ले गयें। फ्रैंक स्माइथ की पुस्तक ‘द वैली ऑफ फ्लावर’ (The valley of flower) प्रकाशित होने पर पूरी दुनिया का ध्यान इसकी ओर गया।

यहाँ दुर्लभ प्रजाति के कस्तूरी मृग, गुलदार, भरल, हिमालयन भालू आदि जन्तु पाये जाते हैं।

फूलों की घाटी को स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में नंदनकानन कहा गया है।

महाकवि कालिदास ने मेघदूत में इसे अलका कहा है।

इस घाटी को गंधमादन, बैंकुंठ, भ्यूंडार, पुष्पावली, पुष्परसा, फ्रैंक स्माइथ घाटी आदि नामों से भी जाना जाता है।

अमेला या पोलीगोन नामक खरपतवार वृक्ष फूलों की घाटी में लगातार फैल रहा है जो इस घाटी के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है।

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