झिलमिल झील आरिक्षिति
Jhilmil Jheel Conservation Reserve
स्थापना - 2005
क्षेत्रफल - 37.84 वर्ग किमी
अवस्थिति - हरिद्वार
- उत्तराखण्ड के हरिद्वार वन प्रभाग के चिड़ियापुर क्षेत्र में गंगा नदी के बायें तट पर स्थित झिलमिल झील कटोरीनुमा दलदली क्षेत्र है। इस झील को सन् 2005 में स्थापित किया गया है। जैव-विविधता से भरपूर यह झील लगभग 3783.5 वर्ग हे क्षेत्र में फैली हुई है। वन्यजीवों में यहाँ हिरणों की पांच प्रजातियां (चीतल, सांभर, काकड़, बारहसिंघा, पाड़ा) हाथी, नीलगाय, तेंदुआ, व बाघ इत्यादि जानवर बहुलता से पाये जाते हैं।
- नवंबर से जनवरी माह में यहाँ प्रवासी पक्षी बड़ी मात्रा में आते हैं। यहाँ लगभग 160 प्रकार के स्थायी व प्रवासी पक्षी पाये जाते हैं। यह क्षेत्र अपनी उत्पादकता के कारण कृषि के लिए भी उपयोगी है तथा बारहसिंघे की एक विशेष प्रजाति के लिए प्रसिद्ध है।
- पर्यावरण व वन्यजीवों के प्रति संवेदनशीलता की कमी के चलते वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र में अधिक मात्रा में यूकेलिप्टस वृक्षों का रोपण किया गया है। जिसके कारण बारहसिंघों का यह प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है। झिलमिल झील इस प्रजाति के लिए अंतिम आश्रय स्थल है। अगस्त 2005 में राज्य सरकार ने पारिस्थितिकी, प्राणि जगत, वनस्पति एवं भू-विविधता के आधार पर इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है।
- बारहसिंघे को आईयूसीएन (इंटरनैशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस – IUCN, International Union for Conservation of Nature & Natural Resources) द्वारा संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया गया है। पिछली शताब्दी में इनकी संख्या काफी थी किंतु अब शोचनीय दशा तक घट चुकी है। बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और ‘विकास कार्यों’ के कारण इनके प्राकृतिक आवास सिमटते जा रहे हैं। झिलमिल झील इस संदर्भ में विशेष संवेदनशील है। यह पर्यावरणविदों के लिए चिंता का बड़ा विषय है।
- हिमालय की तराई में इस तरह के वन न सिर्फ जैव-विविधता की दृष्टि से उपयोगी हैं, बल्कि इस क्षेत्र में आवश्यक नमी बनाये रखने में भी सहायक हैं। इसके फलस्वरूप हिमालयी क्षेत्र में वर्षा के लिए आवश्यक स्थितियाँ बनी रहती हैं। वस्तुत: ये वन संपूर्ण उत्तर भारत की जलचक्रीय इकाई का अभिन्न अंग है।
संदर्भ – रचना तिवारी लेख
झिलमिल झील : झिलमिलाती रहे
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